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________________ छत्तीसवां समुद्घात पद - नैरयिक आदि भावों में वर्तते हुए एक-एक जीव के.... २८७ *antertekrteriorateletelettekesekcketekeskatekacteristicketstatstateketaketeetaketcalenteetcskeletalksateectetectelesceticketertectetElemlsksksksks गोयमा! कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि, जस्स अस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेजा वा अणंता वा। एवं असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते। ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक के नैरयिकत्व में (नरक पर्याय में रहते हुए) कितने वेदना समुद्घात अतीत हुए हैं ? उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के नैरयिकत्व में अतीत वेदना समुद्घात अनंत हुए हैं। प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक के नैरयिकत्व में कितने अनागत वेदना समुद्घात होते हैं ?. हे गौतम! एक एक नैरयिक के नैरयिकत्व में अनागत वेदना समुद्घात किसी के होते हैं किसी के नहीं होते हैं जिसके होते हैं उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। इसी प्रकार एक-एक नैरयिक के असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व में रहते हुए । अतीत और अनागत वेदना समुद्घात समझने चाहिये। विवेचन - नैरयिक पर्याय में रहे हुए एक-एक नैरयिक के अनन्त वेदना समुद्घात अतीत में हुए हैं क्योंकि उसने अनन्त बार नैरयिक पर्याय प्राप्त की है और एक-एक नरक भव में जघन्य संख्यात वेदना समुद्घात होते हैं। एक एक नैरयिक के संसार से लगा कर मोक्ष गमन तक अनागत काल की अपेक्षा किसी के वेदना समुद्घात होते हैं और किसी के नहीं होते। जिस नैरयिक की मृत्यु निकट है वह कदाचित् वेदना समुद्घात किये बिना ही नरक से निकल करके मनुष्य भव पाकर सिद्ध हो जाता है उस नैरयिक की अपेक्षा भविष्य में वेदना समुद्घात नहीं होता। शेष नैरयिकों के वेदना समुद्घात होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन होते हैं। यह भी उन जीवों की अपेक्षा समझना चाहिये जिनका क्षीम हुआ शेष आयुष्य बाकी है और बाद के भव में सिद्ध होने वाले हैं किन्तु उनकी अपेक्षा नहीं समझना चाहिये जो पुनः नरक में उत्पन्न होने वाले हैं क्योंकि उनको तो जघन्य से भी संख्यात वेदना समुद्घात होते हैं। इस संबंध में मूल टीकाकार कहते हैं - "नरकेषु जघन्य स्थितिषूत्पन्नस्य नियमत: संख्येया एव वेदना समुद्घाता भवंति, वेदना समुद्घात प्रचुरत्वानारकाणाम् इति" अर्थात् जघन्य स्थिति वाले नरकों में उत्पन्न होने वाले में अवश्य संख्यात वेदना समुद्घात होते हैं क्योंकि वेदना समुद्घात वाले नैरयिक होते हैं। उत्कृष्ट से संख्यात, असंख्यात और अनंत वेदना समुद्घात कहे हैं। उनमें भी जो एक बार जघन्य स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होने वाला हो उसके संख्यात वेदना समुद्घात होते हैं। जघन्य स्थिति वाले नरक में अनेक बार और दीर्घ स्थिति वाले नरकों में एक बार या बार-बार उत्पन्न होने वाले नैरयिक हैं उनके असंख्यात और अनन्त बार उत्पन्न होने वाले हैं उनके अनन्त वेदना समुद्घात होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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