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प्रज्ञापना सूत्र
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प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के कितने अनागत केवली समुद्घात हैं?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों के अनागत केवलि समुद्घात कदाचित् संख्यात हैं और कदाचित् असंख्यात हैं।
विवेचन - नैरयिकों के अतीत केवलि समुद्घात एक भी नहीं होता, क्योंकि जिन जीवों ने केवलिसमुद्घात किया है उनका नरक गमन नहीं होता। नैरयिकों के भविष्य के केवलिसमुद्घात असंख्यात हैं क्योंकि विवक्षित प्रश्न के समय वर्तते नैरयिकों में असंख्यात नैरयिकों के भविष्य में केवलि समुद्घात होना है इस प्रकार केवलज्ञानियों ने जाना है। वनस्पतिकायिकों और मनुष्यों को छोड़ कर वैमानिक पर्यंत सभी जीवों के अतीत और अनागत केवली समुद्घात के विषय में इसी प्रकार समझना चाहिये।
वनस्पतिकायिक जीवों के अतीत केवली समुद्घात नहीं होते किन्तु अनागत केवली समुद्घात अनन्त होते हैं क्योंकि वनस्पतिकायिकों में अनन्त जीव ऐसे होते हैं जो भविष्य में केवलि समुद्घात करेंगे।
मनुष्यों के अतीत केवलिसमुद्घात कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते। तात्पर्य यह है कि जब प्रश्न के समय समुद्घात से निवृत्त हुए प्राप्त होते हैं तब होते और शेष काल में नहीं होते। उनमें उस समय जिन मनुष्यों ने केवलि समुद्घात किया है वे जघन्य से एक, दो या तीन तथा उत्कृष्ट से शत पृथक्त्व (२०० से ६०० झाझेरी तक) होते हैं क्योंकि उत्कृष्ट पद में एक समय इतने केवलज्ञानी केवली समुद्घात प्राप्त हुए होते हैं। मनुष्यों के कितने केवलि समुद्घात भविष्य में होंगे? इसके उत्तर में प्रभु फरमाते हैं कि - कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होने वाले हैं क्योंकि सम्मूछिम
और गर्भज मनुष्य मिल कर भी असंख्यात ही होते हैं और उनमें भी विवक्षित प्रश्न के समय वर्तते मनुष्यों में बहुत से अभव्य होने से कदाचित् संख्यात केवलि समुद्घात होते हैं, कदाचित् असंख्यात होते हैं क्योंकि जिनके भविष्य में केवलि समुद्घात होने हैं ऐसे जीव बहुत होते हैं। ___अब नैरयिकत्व आदि भावों में वर्तते हुए एक-एक नैरयिक आदि के पूर्व काल में कितने वेदना समुद्घात हुए हैं और कितने भविष्य काल में होते हैं इसका निरूपण करने की इच्छा वाले सूत्रकार कहते हैं - नैरयिक आदि भावों में वर्तते हुए एक एक जीव के अतीत अनागत समुद्घात
एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया वेयणा समुग्धाया अतीता? गोयमा! अणंता। केवइया पुरेक्खडा? .
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