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बाईसवाँ क्रियापद - एक जीव और बहुत जीव की अपेक्षा क्रियाएं
भावार्थ - इसी प्रकार यावत् अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने चाहिए । विशेषता यह है कि एक नैरयिक के अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक में पंचम क्रिया नहीं होती है।
णेरड्या णं भंते! जीवाओ कइकिरिया ?
गोयमा ! सिय तिकिरिया, सिय चउकिरिया, सिय पंचकिरिया ।
भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! अनेक नैरयिक एक जीव की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले
-
होते हैं ?
उत्तर
हे गौतम! अनेक नैरयिक एक जीव की अपेक्षा से कदाचित् तीन क्रियाओं वाले,
-
कदाचित् चार क्रियाओं वाले और कदाचित् पांच क्रियाओं वाले होते हैं।
एवं जाव वेमाणियाओ, णवरं णेरइयाओ देवाओ य पंचमा किरिया णत्थि ।
भावार्थ - इसी प्रकार पूर्वोक्त आलापक के समान एक असुरकुमार से ले कर यावत् एक वैमानिक की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने चाहिए। विशेषता यह है कि एक नैरयिक या एक देव की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक में पंचम क्रिया नहीं होती ।
विवेचन - नैरयिक एवं देवों को निरूपक्रमिक आयुष्य वाले तिर्यंच एवं मनुष्य से भी पंचमक्रिया (प्राणातिपातिकी) नहीं लगती है ।
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रइया णं भंते! जीवेहिंतो कइकिरिया ?
गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अनेक नैरयिक अनेक जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अनेक नैरयिक अनेक जीवों की अपेक्षा से तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं, चार क्रियाओं वाले भी होते हैं और पांच क्रियाओं वाले भी होते हैं।
रइया णं भंते! णेरइएहिंतो कइकिरिया ?
गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि ।
भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! अनेक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अनेक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से तीन क्रियाओं वाले भी होते हैं और चार क्रियाओं वाले भी होते हैं ।
एवं जाव वेमाणिएहिंतो, णवरं ओरालिय सरीरेहिंतो जहा जीवेहिंतो ।
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