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१६
प्रज्ञापना सूत्र
इणं भंते! रइयाओ कइकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक नैरयिक एक नैरयिक की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ?
उत्तर - हे गौतम! एक नैरयिक एक नैरयिक की अपेक्षा से कदाचित् तीन क्रियाओं वाला और कदाचित् चार क्रियाओं वाला होता है।
एवं जाव वेमाणियाओ । णवरं ओरालिय सरीराओ जहा जीवाओ ।
भावार्थ - इसी प्रकार पूर्वोक्त आलापक के समान एक असुरकुमार से लेकर यावत् एक वैमानिक की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने चाहिए। विशेषता यह है कि एक औदारिक शरीर धारक जीव की अपेक्षा से जब क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने हों, तब जीव की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान कहने चाहिए।
इए णं भंते! जीवेर्हितो कइकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक नैरयिक अनेक जीवों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ?
उत्तर - हे गौतम! एक नैरयिक अनेक जीवों की अपेक्षा से कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है ।
इणं भंते! रइएहिंतो कइकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए। एवं जहेव पढमो दंडओ तहा एसो वि बिइओ भाणियव्वो ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ?
उत्तर - हे गौतम! एक नैरयिक, अनेक नैरयिकों की अपेक्षा से कदाचित् तीन क्रियाओं वाला और कदाचित् चार क्रियाओं वाला होता है । इस प्रकार जैसा प्रथम दण्डक कहा है उसी प्रकार यह द्वितीय दण्डक भी कहना चाहिए।
एवं जाव वेमाणिएहिंतो, णवरं णेरइयस्स णेरइएहिंतो देवेहिंतो य पंचमा किरिया णत्थि ।
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