________________
***********
बाईसवाँ क्रियापद - एक जीव और बहुत जीव की अपेक्षा क्रियाएं
****************
उत्तर - हे गौतम! एक जीव, एक नैरयिक की अपेक्षा कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् अक्रिय होता है।
एवं जाव थणियकुमाराओ ।
भावार्थ- पूर्वोक्त एक जीव की एक नैरयिक की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान एक जीव की, एक असुरकुमार से लेकर एक स्तनितकुमार की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने चाहिए ।
पुढविकाइयाओ आउक्काइयाओ तेडक्काइयाओ वाउक्काइय वणस्सइकाइयबेइंदिय-तेइंदिय- चउरिंदिय-पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिय - मणुस्साओ जहा जीवाओ।
Jain Education International
१३
भावार्थ - एक जीव का एक पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, तिर्यंच योनिक एवं एक मनुष्य की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक एक जीव की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान कहने चाहिए।
वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाओ जहा णेरइयाओ ।
भावार्थ - इसी तरह एक जीव का एक वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक की अपेक्षा क्रिया सम्बन्धी आलापक एक नैरयिक की अपेक्षा से क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान कहने चाहिए।
• विवेचन प्रस्तुत सूत्र में एक जीव के दूसरे जीव की अपेक्षा लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा की गयी है। पूर्व जन्म के शरीर का ममत्व नहीं छोड़ने के कारण जीव को कायिकी आदि क्रियाएं इस प्रकार लगती है-अतीतभव की अपेक्षा उसके शरीर के अथवा शरीर के एक भाग का उपयोग होने से कायिकी क्रिया लगती है। उसके पूर्व जन्म के शरीर से जोड़े हुए अथवा तैयार किये हुए हल, कूटयंत्र आदि अथवा उससे बनाये हुए तलवार, भाला आदि का दूसरों के घात के लिए उपयोग किये जाने से अथवा शरीर भी अधिकरण है इसलिए आधिकरणिकी क्रिया लगती है । पूर्वजन्म के शरीर संबंधी अशुभ परिणामों का प्रत्याख्यान - त्याग नहीं किया होने से प्राद्वेषिकी क्रिया भी लगती है । कदाचित् पारितापनिकी क्रिया होने से जीव चार क्रियाओं वाला होता है क्योंकि उसके शरीर से या शरीर के एक भाग रूप अधिकरण से परिताप दिया जाता है। जब पूर्वजन्मगत शरीर से दूसरे का घात कर दिया जाता है तो प्राणातिपातिकी क्रिया लगने से जीव कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है। जब जीव पूर्व जन्म के शरीर का तीन करण तीन योग से त्याग कर देता है तब वह अक्रिय होता है । यह अक्रियता मनुष्य की अपेक्षा से ही समझनी चाहिये क्योंकि मनुष्य ही सर्वविरति हो सकता है । अथवा सिद्धों की अपेक्षा अक्रियता समझनी चाहिये क्योंकि शरीर और मनोवृत्ति के अभाव में सिद्ध जीव अक्रिय होते हैं।
देवों और नैरयिकों की अपेक्षा जीव चार क्रियाओं वाला ही होता है क्योंकि किसी भी कारण से
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org