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________________ १२ भवनक ************ प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - ज्ञानावरणीय कर्म के समान दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय इन आठों प्रकार की कर्म प्रकृतियों को बांधता हुआ एक जीव या एक नैरयिक से यावत्. वैमानिक अथवा बांधते हुए अनेक जीवों या अनेक नैरयिकों से यावत् वैमानिकों को लगने वाली क्रियाओं के आलापक कहने चाहिए। एकत्व और पृथक्त्व के आश्रयी कुल सोलह दण्डक होते हैं । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में जीव प्राणातिपात आदि से ज्ञानावरणीय आदि कर्म बांधते हुए कितनी क्रियाओं वाला होता है इसकी प्ररूपणा की गयी है । जब तीन क्रियाओं वाला होता है तब कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया होती है। कायिकी से हाथ, पैर आदि अवयवों की प्रवृत्ति आधिकरणिकी से खड्ग (तलवार) आदि को तेज या ठीक कर के रखना और प्राद्वेषिकी से उसे मारूँ' इस प्रकार मन में अशुभ विचार करता है। जब वह चार क्रियाओं वाला होता है तब कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी और पारितापनिकी क्रिया से युक्त होता है। पारितापनिकी अर्थात् तलवार आदि से प्रहार कर पीड़ा पहुँचाना। जब वह पांच क्रियाओं वाला होता है तब पूर्वोक्त चार के अलावा पांचवीं प्राणातिपातिकी से भी युक्त हो जाता है। प्राणातिपातिकी क्रिया अर्थात् जीवन से रहित करना । ज्ञानावरणीयं कर्म बांधने वाले जीव सदैव बहुत होते हैं अतः तीन क्रिया वाले, चार क्रिया वाले और पांच क्रिया वाले भी बहुत होते हैं। इस प्रकार एक जीव, एक नैरयिक आदि तथा अनेक जीव या अनेक नैरयिक आदि चौबीस दण्डकों के जीवों को लेकर क्रियाओं का कथन किया गया है। जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के एक जीव और अनेक जीव की अपेक्षा दो दण्डक कहे हैं उसी प्रकार दर्शनावरणीय आदि शेष कर्मों के भी प्रत्येक के दो-दो दण्डक कहने चाहिये। इस प्रकार कुल ८x२= १६ दण्डक होते हैं । Jain Education International एक जीव और बहुत जीव की अपेक्षा क्रियाएं जीवे णं भंते! जीवाओ कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए। भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन् ! एक जीव, एक जीव की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ? उत्तर - हे गौतम! एक जीव, एक जीव की अपेक्षा कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चारक्रियाओं वाला, कदाचित् पांच क्रियाओं वाला और कदाचित् अक्रिय (क्रिया रहित) होता है । जीवे णं भंते! णेरइयाओ कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय अकिरिए । भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन् ! एक जीव, एक नैरयिक की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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