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________________ बत्तीसइमं संजमपयं बत्तीसवां संयत पद प्रज्ञापना सूत्र के इकत्तीसवें पद में संज्ञी जीवों के परिणाम का कथन किया गया है अब इस बत्तीसवें पद में चारित्र के परिणाम विशेष संयम का कथन किया जाता है जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है जीवाणं भंते! किं संजया, असंजया, संजयासंजया, नोसंजया नोअसंजयानोसंजयासंजया ? गोयमा ! जीवा संजया वि १, असंजया वि २, संजयासंजया वि ३, णोसंजय णो असंजय णोसंजयासंजया वि ४ ॥ भावार्थ - - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव संयत होते हैं, असंयत होते हैं, संयतासंयत होते हैं अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! जीव संयत भी होते हैं, असंयत भी होते हैं, संयतासंयत भी होते हैं और नोसंयत-नो असंयत-नोसंयतासंयत भी होते हैं। विवेचन - जो सर्व सावद्य योगों से सम्यक् रूप से निवृत्त हो चुके हैं अर्थात् चारित्र परिणाम के वृद्धि के कारणभूत निरवद्य योगों में प्रवृत्त हैं वे संयत कहलाते हैं। आशय यह है कि जो हिंसा पाप स्थानों से सर्वथा विरत हो चुके हैं वे संयत हैं। उनसे विपरीत असंयत हैं। जो हिंसादि से देश सेआंशिक रूप से निवृत्त हो चुके हैं वे संयतासंयत कहलाते हैं तथा जो इन तीनों से भिन्न है, संयत आदि तीनों पर्यायों से निवृत्त हो चुके हैं ऐसे सिद्ध नोसंयत नोअसंयत नोसंयतासंयत कहलाते हैं। शंका- सिद्धों को संयत आदि तीनों पर्यायों से निवृत्त कैसे समझना ? समाधान - संयत निरवद्य योग की प्रवृत्ति और सावद्य योग की निवृत्ति रूप है अतः संयत आदि पर्याय योग के आश्रित है और सिद्ध भगवान् योग से रहित हैं क्योंकि उनके शरीर और मन का अभाव है अतः सिद्ध भगवान् संयत आदि तीनों पर्यायों से निवृत्त कहे गये हैं । इस प्रकार समुच्चय जीव पद में संयत, असंयत, संयतासंयत और नोसंयत नोअसंयत नो संयतासंयत रूप चारों अवस्थाएं घटित होती है । रइयाणं भंते! पुच्छा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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