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उनतीसवां उपयोग पद
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णेरड्या णं भंते! किं सागारोवडत्ता अणागारोवउत्ता ?
गोयमा! णेरड्या सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि ।
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जीवाणं भंते! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ? गोयमा! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - 'जीवा सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि' ? गोयमा! जेणं जीवा आभिणिबोहियणाणसुयणाण ओहिणाण मणपज्जवणाण केवलणाण मइअण्णाणसुयअण्णाणविभंगणाणोवउत्ता तेणं जीवा सागारोवउत्ता, जेणं जीवा चक्खुदंसण अचक्खुदंसण ओहिदंसण केवलदंसणोवउत्ता तेणं जीवा अणागारोवउत्ता, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चड़ - ' जीवा सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि' ।
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीव साकारोपयुक्त है या अनाकारोपयुक्त ?
उत्तर- हे गौतम! जीव साकार उपयोग वाले भी होते हैं और अनाकार उपयोग वाले भी होते हैं ? प्रश्न - हे भगवन्! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जीव साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जो जीव अभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान तथा मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान वाले होते हैं वे साकारोपयुक्त (साकार उपयोग) वाले कहे जाते हैं तथा जो जीव चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन से युक्त होते हैं वे अनाकार उपयोग वाले कहे जाते हैं। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि जीव साकार उपयोग वाले भी होते हैं और अनाकार उपयोग वाले भी होते हैं।
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से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ० ?
गोयमा ! जेणं णेरड्या आभिणिबोहियणाणसुयणाणओहिणाणमइअण्णाणसुयअण्णाणविभंगणाणोवउत्ता तेणं णेरड्या सागारोवउत्ता, जेणं णेरड्या चक्खुदंसणअचक्खुदंसणओहिदंसणोवउत्ता तेणं णेरड्या अणागारोवउत्ता, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - जाव 'सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि, ' एवं जाव थणियकुमारा ।
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