________________
एगूणतीसइमं उवओगपयं
उनतीसवां उपयोग पद
प्रज्ञापना सूत्र के अट्ठाइसवें पद में गति के परिणाम विशेष रूप आहार परिणाम का कथन किया गया है। इस उनतीसवें पद में ज्ञान के परिणाम विशेष रूप उपयोग का प्रतिपादन किया जाता है। जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं -
कइविहे णं भंते! उवओगे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे वओगे पण्णत्ते । तंजहा - सागारोवओगे य अणागारोवओगे यं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! उपयोग दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है- साकारोपयोग और अनाकारोपयोग।
!.
विवेचन - 'उपयुज्यतेऽनेन' - जिसके द्वारा जीव वस्तु का परिज्ञान (जानकारी) करने के लिये प्रवृत्ति करता है, उसे उपयोग कहते हैं । अर्थात् जीव का बोध रूप तात्त्विक व्यापार उपयोग कहलाता है। उपयोग के दो भेद हैं - १. साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । प्रतिनियत अर्थ को ग्रहण करने का परिणाम आकार कहलाता है और जो आकार सहित हो वह साकार है । वस्तु का विशेषग्राही बोध रूप व्यापार साकार उपयोग कहलाता है। तात्पर्य यह है कि सचेतन या अचेतन वस्तु में उपयोग करती हुई आत्मा जब पर्याय सहित वस्तु को जानती है तब वह उपयोग साकार उपयोग कहलाता है। जिस उपयोग में पूर्वोक्त रूप आकार नहीं हो उसे अनाकार उपयोग कहते हैं । वस्तु का सामान्यग्राही बोध रूप व्यापार अनाकार उपयोग कहलाता है ।
काल की अपेक्षा छद्मस्थों का साकार उपयोग अंतर्मुहूर्त्त तक और केवलियों का साकारोपयोग एक समय का होता है। अनाकार उपयोग का काल भी छद्मस्थों के लिए अंतर्मुहूर्त्त का कहा गया है किन्तु अनाकार उपयोग के काल से साकार उपयोग का काल संख्यातगुणा समझना चाहिये क्योंकि विशेष ग्राही होने से उसमें अधिक समय लगता है।
सागारोवओगे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते । तंजहा - आभिणिबोहियणाणसागारोवओगे, सुयणाणसागारोवओगे, ओहिणाणसागारोवओगे, मणपज्जवणाणसागारोवओगे, केवल
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org