________________
१५०
प्रज्ञापना सूत्र
जीव सात कर्म प्रकृतियों के, आठ कर्म प्रकृतियों के, छह कर्म प्रकृतियों के तथा एक जीव एक कर्म प्रकृति का बंधक होता हूँ ९. अथवा बहुत जीव सात कर्म प्रकृतियों के, आठ कर्म प्रकृतियों के, छह कर्म प्रकृतियों के और एक कर्म प्रकृति के बांधने वाले होते हैं। ये कुल नौ भंग हुए। एकेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को छोड़कर शेष जीवों यावत् वैमानिकों तक के तीन भंग कहने चाहिए। बहुत से एकेन्द्रिय जीव सात कर्म प्रकृतियों और आठ कर्म प्रकृतियों के बन्धक होते हैं।
विवेचन - समुच्चय बहुत जीव ज्ञानावरणीय कर्म वेदते हुए सात, आठ, छह अथवा एक कर्म बांधते हैं। सात, आठ कर्म बांधने वाले शाश्वत हैं तथा छह और एक कर्म बांधने वाले अशाश्वत हैं। इनके नौ भंग होते हैं - १. सभी सात आठ कर्म बांधने वाले २. सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाला एक ३. सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाले बहुत ४ सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, एक कर्म बांधने वाला एक ५. सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, एक कर्म बांधने वाले बहुत ६. सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाला एक, एक कर्म बांधने वाला एक ७. साथ आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाला एक, एक कर्म बांधने वाले बहुत ८. सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाले बहुत, एक कर्म बांधने वाला एक ९. सात आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाले बहुत, एक कर्म बांधने वाले बहुत। . . ___एकेन्द्रिय (पांच स्थावर) और मनुष्य के सिवाय शेष यावत् वैमानिक तक बहुत जीव ज्ञानावरणीय कर्म वेदते हुए सात आठ कर्म बांधते हैं। सात कर्म बांधने वाले शाश्वत हैं और आठ कर्म बांधने वाले अशाश्वत हैं। इनके तीन भंग कहना चाहिए। पांच स्थावर के बहुत जीव ज्ञानावरणीय कर्म वेदते हुए सात आठ कर्म बांधते हैं। सात कर्म बांधने वाले बहुत हैं और आठ कर्म. बांधने वाले भी बहुत हैं। शाश्वत होने से इनमें भंग नहीं होता।
मणूसाणं पुच्छा?
गोयमा! सव्वे वि ताव होजा सत्तविहबंधगा १, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य २, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३, अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य ४, एवं छव्विहबंधएण वि समं दो भंगा ५, एगविहबंधएण वि समं दो भंगा ६-७, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छविहबंधए य चउभंगो १, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य एगविहबंधए य चउभंगो २, अहवा सत्तविहबंधगा य छविहबंधए य एगविहबंधए य चउभंगो ३, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छविहबंधए य एगविहबंधए य भंगा अट्ट, एवं एए सत्तावीसं भंगा। एवं जहा णाणावरणिजं तहा दंसणावरणिजं पि अंतराइयं पि॥६३८॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org