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चौबीसवां कर्मबंध पद
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उत्तर - हे गौतम! आयुष्य कर्म को बांधता हुआ जीव नियम से आठ कर्म प्रकृतियाँ बांधता है। नैरयिकों से लेकर वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में इसी प्रकार कहना चाहिए। इसी प्रकार बहुवचन की अपेक्षा भी कहना चाहिए।
विवेचन - आयुष्य कर्म का बंधक जीव नियम से आठ कर्म का बंधक होता है अत: उनमें एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा कोई भंग नहीं होता है।
णामगोय अंतराइयं० बंधमाणे जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ?
गोयमा! जाओ णाणावरणिजं कम्मं बंधमाणे बंधइ ताहि भाणियव्वो। एवं णेरइए वि जाव वेमाणिए। एवं पुहुत्तेण वि भाणियव्वं ॥६३६॥ .
॥पण्णवणाए भगवईए चउवीसइमं कम्मबंधपयं समत्तं॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्म प्रकृतियों बांधता है?
उत्तर - हे गौतम! नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म को बांधता हुआ जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते हुए जिन कर्म प्रकृतियों को बांधता है वे ही यहाँ कहनी चाहिये। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक.कहना चाहिए। इसी प्रकार बहुवचन में भी समझ लेना चाहिए। - विवेचन - ज्ञानावरणीय कर्म के साथ जिन कर्म प्रकृतियों का बंध कहा गया है उन्हीं प्रकृतियों का बन्ध नाम, गोत्र और अन्तराय इन तीन कर्मों के बंध के साथ होता है।
॥प्रज्ञापना भगवती सूत्र का चौवीसवाँ कर्म बन्ध पद समाप्त॥
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