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प्रज्ञापना सूत्र
तिरिक्खजोणियाउयस्स वि, णवरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं। एवं मणुयाउयस्स वि। देवाउयस्स जहा णेरइयाउयस्स।
भावार्थ - मिथ्यात्व वेदनीय कर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम हजार सागरोपम की और उत्कृष्ट परिपूर्ण उतने ही सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। ___ नरकायुष्य का जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट करोड़ पूर्व के तीसरे भाग अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग का बन्ध करते हैं। इसी प्रकार तिर्यंचायु की भी स्थिति समझनी चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि जघन्य अन्तर्मुहूर्त का बंध करते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु के बन्ध काल के विषय में समझना चाहिए। देवायु का बन्ध नरकायु के समान समझना चाहिए।
असण्णी णं भंते! जीवा पंचिंदिया णिरयगइणामाए कम्मस्स किं बंधति?..
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे०। एवं तिरियगइणामाए वि। . .
मणुयगइणामाए वि एवं चेव, णवरं जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दिवडे सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति।
एवं देवगइणामाए वि, णवरं जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एर्ग सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव नरक गति नाम कर्म की कितनी स्थिति बांधते हैं ? उत्तर - हे गौतम! असंज्ञी पंचेन्द्रिय जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग हजार सागरोपम के भाग और उत्कृष्ट परिपूर्ण हजार सागरोपम के 2 भाग बंध करते हैं। इसी प्रकार तिर्यंच गति नाम कर्म के विषय में समझना चाहिए।
मनुष्यगति नाम कर्म के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए। किन्तु विशेषता यह है कि जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम हजार सागरोपम के " भाग और उत्कृष्ट परिपूर्ण स्थिति का बंध करते हैं। इसी प्रकार देवगति नाम कर्म के विषय में समझना चाहिए। किन्तु विशेषता यह है कि इसका जघन्य बन्ध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम हजार सागरोपम के भाग का और उत्कृष्ट परिपूर्ण उतनी ही स्थिति का बंध करते हैं।
वेउब्धियसरीरणामाए पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेजा-. भागेण ऊणए, उक्कोसेणं दो परिपुण्णे बंधति।
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