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________________ तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ ११९ 本年中本本木3本3本4本 एगिंदिया णं भंते! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधति? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिणि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति। एवं णिहापंचगस्स वि, दंसणचउक्कस्स वि। कठिन शब्दार्थ - पडिपुण्णे - परिपूर्ण। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीय कर्म कितने काल का बांधते हैं ? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीय कर्म जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के - भाग का और उत्कृष्ट परिपूर्ण सागरोपम के - भाग का बन्ध करते हैं। इसी प्रकार निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क का जघन्य और उत्कृष्ट बन्ध भी समझना चाहिए। एगिंदिया णं भंते! जीवा सायावेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। असायावेयणिज्जस्स जहा णाणावरणिजस्स। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीय कर्म कितने काल का बांधते हैं? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीय कर्म जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के " भाग और उत्कृष्ट पूरे सागरोपम के " भाग का बन्ध करते हैं। अंसातावेदनीय का बन्ध ज्ञानावरणीय के समान समझना चाहिए। एगिदिया णं भंते! जीवा सम्मत्तवेयणिजस्स किं बंधति? गोयमा! णस्थि किंचि बंधंति। एगिदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिजस्स कम्मस्स किं बंधति? गीयमा! जहण्णेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखिज्जाभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। एगिदिया णं भंते! जीवा सम्मामिच्छत्तवेयणिजस्स० किं बंधति? गोयमा! णत्थि किंचि बंधंति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकेन्द्रिय जीव सम्यक्त्व वेदनीय कर्म कितने काल का बांधते हैं ? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव सम्यक्त्व वेदनीय कर्म का बन्ध करते ही नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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