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________________ तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ ९९ 中中中中中中中中中中中中中中中中中中中 中 中中中中inplm111114744774-4-14 प्रश्न - हे भगवन् ! देवगति नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! देवगति नाम कर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र (हजार) सागरोपम के एक सप्तांश (-) भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पुरुषवेद की स्थिति के समान है। एगिदियजाइणामए णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखिजभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीसवाससयाई अबाहा०। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकेन्द्रिय जाति नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जाति नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २ भाग की है और उत्कृष्ट बीस कीडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म निषेक काल है। बेइंदियजाइणामए णं पुच्छा? ... गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसइभागा पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ, अट्ठारस य वाससयाई अबाहा। .. तेइंदियजाइणामए णं जहण्णेणं एवं चेव उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ, अट्ठारस वाससयाइं अबाहा०। चउरिदियजाइणामाए णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसइभागा पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ, अट्ठारस वाससयाई अबाहा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जाति नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय जाति नाम कर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म-निषेककाल है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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