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________________ पन्द्रहवां इन्द्रिय पद- द्वितीय उद्देशक - ग्यारहवां द्रव्येन्द्रिय द्वार 00000000000000 तेइंदियाणं भंते! कइ दव्विंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दव्वंदिया पण्णत्ता । तंजहा - दो घाणा, जीहा, फासे । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तेइन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? उत्तर - हे गौतम! तेइन्द्रिय जीवों के चार द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन | चरिदियाणं भंते! कइ दव्विंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! छ दव्विंदिया पण्णत्ता । तंजहा- दो णेत्ता, दो घाणा, जीहा, फासे । सेसाणं जहां णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ ४५२ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! चउरिन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? उत्तर - हे गौतम! चउरिन्द्रिय जीवों के छह द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं- दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन। शेष सबके - तिर्यंचपंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वाणव्यंतरों, ज्योतिष्कों यावत् वैमानिकों के नैरयिकों की तरह आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहनी चाहिए। - विवेचन प्रस्तुत सूत्र में द्रव्येन्द्रियों के आठ भेद एवं चौबीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा की गई हैं। आठ द्रव्येन्द्रियाँ इस प्रकार हैं- दो कान, दो आँख, दो नाक, एक जिह्वा और एक स्पर्शनेन्द्रिय । नैरयिक, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य के आठ द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं। पांच स्थावर के एक द्रव्येन्द्रिय- स्पर्शनेन्द्रिय होती हैं । बेइन्द्रिय के दो द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं - जिह्वा और स्पर्शनेन्द्रिय । तेइन्द्रिय के चार द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं- दो नाक, जिह्वा और स्पर्शनेन्द्रिय । चउरिन्द्रिय के ये चार और दो आँखें- ये छह द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं। एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स केवइया दव्विंदिया अतीता ? गोयमा ! अनंता । ६९ Jain Education International Q3Ó3Ó3Ó3Ó3000000000 भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन् ! एक-एक नैरयिक की अतीत (भूतकाल की ) द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! अनन्त हैं । उत्तर - हे गौतम! आठ हैं। केवड्या बद्धेल्लगा गोमा ! अट्ठ । भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! एक-एक नैरयिक की कितनी द्रव्येन्द्रियाँ बद्ध (वर्तमान काल - की) हैं ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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