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प्रज्ञापना सूत्र
के चरम निर्जरा पुद्गलों के अन्यत्व आदि को जान-देख नहीं पाता तो मनुष्य की तो बात ही दूर रही अर्थात् छद्मस्थ मनुष्य उन चरम निर्जरा पुद्गलों को जानने-देखने में असमर्थ रहता है।
११. आहार द्वार णेरइया णं भंते! ते णिज्जरा पोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेंति, उदाहुणं जाणंति ण पासंति आहारैति?
गोयमा! जेरइया णं ते णिजरा पोग्गले ण जाणंति ण पासंति आहारेंति, एवं . जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं॥४४०॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या नैरयिक उन चरम निर्जरा पुद्गलों को जानते-देखते हुए उनका आहार ग्रहण करते हैं अथवा उन्हें नहीं जानते-देखते और नहीं आहार करते हैं?
- उत्तर - हे गौतम! नैरयिक उन निर्जरा पुद्गलों को जानते नहीं, देखते नहीं किन्तु आहार ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचों तक के विषय में कह देना चाहिए।
मणुस्सा णं भंते! ते णिज्जरा पोग्गले किं जाणंति पासंति आहारेंति, उदाहु ण जाणंति ण पासंति ण आहारेंति?
गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगझ्या ण जाणंति ण पासंति आहारेंति।
__ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या मनुष्य उन निर्जरा पुद्गलों को जानते हैं, देखते हैं और उनका आहार करते हैं ? अथवा उन्हें नहीं जानते, नहीं देखते और नहीं आहार करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! कोई-कोई मनुष्य उनको जानते हैं और देखते हैं और उनका आहार करते हैं और कोई-कोई मनुष्य जानते नहीं, देखते नहीं किन्तु उनका आहार करते हैं।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'अत्थेगइया जाणंति, पासंति, आहारैति, अत्थेगइया ण जाणंति, ण पासंति, आहारैति?'
गोयमा! मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - सण्णिभूया य असण्णिभूया य। तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं ण जाणंति ण पासंति आहारेंति। तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - उवउत्ता य अणुवउत्ता य। तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता ते णं ण जाणंति, ण पासंति, आहारेंति। तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते णं
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