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________________ 382 प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! जैसे बेइन्द्रिय के तैजस शरीर की अवगाहना कही है, उसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक की अवगाहना समझनी चाहिए। विवेचन - मारणांतिक समुद्घात से समवहत तिर्यंच पंचेन्द्रिय के तैजस शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना तिरछे लोक से लोकान्त तक की होती है। यह बेइन्द्रिय आदि की तरह समझनी चाहिए क्योंकि एकेन्द्रियों में तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उत्पत्ति संभव है। मणुस्सस्स णं भंते! मारणंतिय समुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता?. गोयमा! समयखेत्ताओ लोगंतो। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है? .. उत्तर - हे गौतम! मनुष्य के तैजसशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना समय क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) से लोकान्त (ऊर्ध्वलोक या अधोलोक के अन्त) तक की होती है। विवेचन - मनुष्य के तैजस शरीर की अवगाहना समय क्षेत्र से लोकान्त तक की कही गई है। मनुष्य का जन्म या संहरण समय क्षेत्र से अन्यत्र संभव नहीं है अतः इससे अधिक तैजस शरीर की अवगाहना नहीं हो सकती। इसे समय क्षेत्र इसलिए कहते हैं कि ढाई द्वीप प्रमाण क्षेत्र ही ऐसा है जहाँ सूर्य आदि के गमन से समय का व्यवहार होता है। समयक्षेत्र से लेकर ऊर्ध्व और अधोलोकान्त प्रमाण मनुष्य के तैजस शरीर की अवगाहना होती है क्योंकि समय क्षेत्र मनुष्यों के उत्पत्ति का स्वस्थान होने से वहाँ से सभी तरफ लोकान्त तक एकेन्द्रिय आदि में उत्पन्न होते समय इतनी अवगाहना हो सकती है। मनुष्य की भी एकेन्द्रिय आदि में उत्पत्ति संभव है। असुरकुमारस्सणं भंते! मारणंतिय समुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभ बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं, उक्कोसेणं अहे जाव तच्चाइ पुढवीए हिट्ठिल्ले चरमंते, तिरियं जाव सयंभुरमण समुदस्स बाहिरिल्ले वेइयंते, उड्डे जाव ईसिप्पब्भारा पुढवी। ... भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत असुरकुमार के तैजस शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? . उत्तर - हे गौतम! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीर प्रमाण मात्र शरीर के बराबर तथा आयाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट नीचे की ओर तीसरी नरक Jain Education International For Personal & Private Use.Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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