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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार
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बेइन्द्रियों के औधिक औदारिक शरीर की कही है। अर्थात् जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन की होती है।
एवं तेइंदियाणं तिण्णि गाउयाई, चउरिदियाणं चत्तारि गाउयाई। ... कठिन शब्दार्थ - गाउयाई - गव्यूति-गाऊ।
भावार्थ - इसी प्रकार औधिक और पर्याप्तक तेइन्द्रिय के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाऊ की है तथा औधिक और पर्याप्तक चतुरिन्द्रियों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना चार गाऊ की है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तीन विकलेन्द्रिय जीवों के औदारिक शरीर की अवगाहना का निरूपण किया गया है। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय प्रत्येक के तीन-तीन सूत्र कहे हैं-१. औधिक सूत्र २. अपर्याप्त सूत्र और ३. पर्याप्त सूत्र। औधिक सूत्र और पर्याप्त सूत्र में बेइन्द्रिय के औदारिक शरीर की अवगाहना उत्कृष्ट बारह योजन, तेइन्द्रिय की तीन गाऊ और चउरिन्द्रिय की चार गाऊ प्रमाण होती है। अपर्याप्त सूत्र में जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ३, एवं सम्मच्छिमाणं ३, गब्भवक्कंतियाण वि ३, एवं चेव णवओ भेदो भाणियव्वो।
भावार्थ -पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों के औधिक औदारिक शरीर की, उनके २. पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की तथा उनके ३. अपर्याप्तकों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है। तथा सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के औधिक और पर्याप्तक औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना भी इसी प्रकार एक हजार योजन की समझनी चाहिए किन्तु सम्मूछिम अपर्याप्तक तिर्यंच पंचेन्द्रिय के
औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है। गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना भी इसी प्रकार समझनी चाहिए, किन्तु इनके अपर्याप्तकों की अवगाहना पूर्ववत् होती है। इस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की औदारिक शरीरावगाहना सम्बन्धी कुल ९ भेद (आलापक) होते हैं। . एवं जलयराण वि जोयणसहस्स णवओ भेदो।
भावार्थ -इसी प्रकार औधिक और पर्याप्तक जलचरों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की. पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की औदारिक शरीरावगाहना के समान होती है। अपर्याप्तक जलचरों की औदारिक शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पूर्ववत् जाननी चाहिए। इसी प्रकार पूर्ववत् इसकी औदारिक शरीरावगाहना के ९ भेद (विकल्प) होते हैं।
थलयराण वि णव भेदा ९, उक्कोसेणं छ गाउयाई, पज्जत्तगाण वि एवं चेव,
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