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बीसवां अन्तक्रिया पद - रत्न द्वार
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विवेचन - सातवीं नारकी के नैरयिक और तेजस्कायिक, वायुकायिक के जीव काल कर मनुष्य नहीं बनते अतः शेष सभी भवों से निकल कर मनुष्य बनने वाले जीव माण्डलिक पद प्राप्त कर सकते हैं।
१०. रत्न द्वार सेणावइरयणत्तं गाहावइरयणत्तं वड्डइरयणत्तं पुरोहियरयणत्तं इत्थिरयणत्तं च एवं चेव, णवरं अणुत्तरोववाइय वजेहिंतो।
भावार्थ - सेनापतिरत्न पद, गाथापतिरत्न पद, वर्धकीरत्न पद, पुरोहितरत्न पद और स्त्रीरत्न पद की प्राप्ति के सम्बन्ध में इसी प्रकार अर्थात्-माण्डलिकत्व प्राप्ति के कथन के समान समझना चाहिए। विशेषता यह है कि अनुत्तरौपपातिक देवों को छोड़ कर उपरोक्त सेनापति रत्न आदि प्राप्त हो सकते हैं।
आसरयणत्तं हत्थिरयणत्तं रयणप्पभाओ णिरंतरं जाव सहस्सारो अत्थेगइए लभेजा, अत्थेगइए णो लभेजा। .. भावार्थ - अश्वरत्न एवं हस्तिरत्न पद रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर निरन्तर सहस्रार देवलोक के देव तक का कोई जीव प्राप्त कर सकता है, कोई प्राप्त नहीं कर सकता है।
चक्करयणत्तं छत्तरयणत्तं चम्मरयणत्तं दंडरयणत्तं असिरयणत्तं मणिरयणत्तं कागिणिरयणत्तं एएसि णं असुरकुमारेहितो आरद्धं णिरंतरं जाव ईसाणाओ उववाओ, सेसेहितो णो इणढे समढे॥५६६॥
भावार्थ - चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न एवं काकिणीरत्न पर्याय में उत्पत्ति-असुरकुमारों से लेकर निरन्तर यावत् ईशानकल्प के देवों तक से हो सकती है, शेष भवों से आए हुए जीवों में यह योग्यता नहीं है।
विवेचन - प्रस्तुत रत्नद्वार में चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से कौनसा रत्न किसे प्राप्त हो सकता है, इसकी प्ररूपणा की गयी है। सातवीं नारकी के नैरयिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक के जीव और अनुत्तर विमानवासी देवों को छोड़ कर शेष भवों से आने वाले जीव सेनापति रत्न, गाथापति रत्न, वर्धकी रत्न, पुरोहित रत्न और स्त्रीरत्न पद प्राप्त कर सकते हैं। अश्व रत्न और हस्तिरत्न पद पहली नारकी से लगा कर आठवें देवलोक तक के देव प्राप्त कर सकते हैं। चक्र रत्न, चर्म रत्न, छत्र रत्न, दण्ड रत्न, असि रत्न, मणिरत्न और काकिणी रत्न पद असुरकुमार से लेकर ईशान कल्प तक के देव प्राप्त कर सकते हैं।
उपरोक्त सूत्रों में वर्णित चक्रवर्ती के चौदह रत्नों का विस्तार से वर्णन - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के तीसरे वक्षस्कार में किया गया है। विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए।
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