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________________ बीसवां अन्तक्रिया पद - एक समय द्वार भावार्थ - अन्तरागत रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भी इसी प्रकार अन्तक्रिया करते हैं यावत् वालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिक भी इसी प्रकार अन्तक्रिया करते हैं। अनंतरागया णं भंते! पंकप्पा पुढवीणेरड्या एगसमएणं केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहणेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अन्तरागत पंकप्रभापृथ्वी के कितने नैरयिक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! अनन्तरागत पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार अन्तक्रिया करते हैं । २९९ doaadoo अणंतरागया णं भंते! असुरकुमारा एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोमा ! हक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं दस । 1 भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनन्तरागत कितने असुरकुमार एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दस अन्तक्रिया करते हैं । अणंतरागयाओ णं भंते! असुरकुमारीओ एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोमा ! जहणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं पंच । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अनन्तरागत कितनी असुरकुमारियाँ एक समय में अन्तक्रिया करती हैं ? उत्तर - हे गौतम! अनन्तरागत असुरकुमारियाँ एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पांच अन्तक्रिया करती हैं । एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणियकुमारा । भावार्थ - इसी प्रकार जैसे अनन्तरागत असुरकुमारों तथा उनकी देवियों की संख्या एक समय में अन्तक्रिया करने की बताई है उतनी ही स्तनितकुमारों तथा उनकी देवियों तक की संख्या अन्तक्रिया के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए। Jain Education International अणंतरागया णं भंते! पुढविकाइया एगसमएणं केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहणेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! कितने अनन्तरागत पृथ्वीकायिक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार अन्तक्रिया करते हैं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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