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________________ २८० प्रज्ञापना सूत्र 0000000000000000000000000000000000000000 अधिकतर जीव एक-दो समय अनाहारक रहने वाले ही होते हैं । किन्तु दो समय से अधिक अनाहारक का सर्वथा निषेध नहीं समझना चाहिए। क्योंकि भगवती सूत्र के ३४ वें शतक में चार समय के विग्रह से भी एकेन्द्रिय जीवों का उत्पन्न होना बताया है । चार समय के विग्रह में तीन समय तक अनाहारक की स्थिति संभव होती है। किन्तु ऐसे जीव बहुत कम होने से इसे नगण्य कर दिया है। यद्यपि लोक की क्षैत्रिक परिस्थिति के अनुसार जीव की पांच समय के विग्रह वाली गति भी संभव हो सकती है । तथापि उस प्रकार के विग्रहों से उत्पन्न होने वाले जीव बहुत कम होने से या उनका अभाव होने से आगम में नहीं बताये गये हो या चार समय के विग्रह से उत्पन्न होने वाले जीवों से भी पांच समय के विग्रह से उत्पन्न होने वाले जीव अत्यल्प होने से उसे नगण्य कर दिया गया हो । ऐसा समाधान विक्रम की छट्ठी सातवीं शती में होने वाले आचार्य जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण अपने स्वरचित 'विशेषणवती' ग्रन्थ में करते हैं, जो उचित ही प्रतीत होता है। इस सम्बन्ध में विशेषणवती ग्रन्थ में आई हुई गाथाएं इस प्रकार हैं - "सुत्ते चउ समयाओ, णत्थि गईओ परा विणिद्दिट्ठा । जुञ्जइय पंच समया, जीवस्स इमो गह लोए ॥ २३ ॥ जो तमतमविदिसाए, समोहओ बंभलोगविदिसाए । उववज्जइ गइ एसो, नियमा पंच समयाए ॥ २४ ॥ उज्जुया एकवक्का, दुहओवंका गह विणिद्दिट्ठा । जुज्जइय ति चउवक्का, विणाणं पंच समयाए ॥ २५ ॥ उववायाभावाओ, न पंच समयाओ हवा ण संताऽवि । भणिया जह चउसमया, महल्लबंधे ण संताऽवि ॥ २६ ॥ " pro इन्हीं सब कारणों से कर्मग्रन्थ एवं प्रज्ञापना टीका में तीन चार समय अनाहारक होना बताया जाता है । तीन समय तक अनाहारक रहना तो भगवती सूत्र के ३४ वें आदि शतकों से सुस्पष्ट हो जाता है। केवल अणाहारए णं भंते! केवलि० ? गोयमा! केवलि अणाहारए दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - सिद्ध केवलि अणाहारए य भवत्थ केवल अणाहारए य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! केवली अनाहारक, केवली - अनाहारक के रूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ? Jain Education International उत्तर - हे गौतम! केवली - अनाहारक दो प्रकार के होते हैं - १. सिद्धकेवली - अनाहारक और २. भवस्थकेवली - अनाहारक । For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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