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प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - जिनकी दृष्टि सम्यग्, यथार्थ या अविपरीत हो अथवा जिनप्रणीत तत्त्वों पर जिसकी श्रद्धा, प्रतीति और रुचि सम्यक् हो, उसे सम्यग् दृष्टि कहते हैं। सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के कहे गये हैं - १. सादि अपर्यवसित - जिसे क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है वह सादि अपर्यवसित सम्यग्दृष्टि है क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्व का नाश नहीं होता है। २. सादि सपर्यवसित - जिसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है वह सादि सपर्यवसित सम्यक्त्वी है। सादि सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि की कास्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट कुछ अधिक ६६ सागरोपम की कही है। यदि कोई जीव दो बार विजय आदि विमानों में सम्यक्त्व सहित उत्कृष्ट स्थिति वाला देव हो या तीन बार अच्युत देवलोक में उत्पन्न हो तो. देवभवों की अपेक्षा ६६ सागरोपम पूर्ण होते हैं और जो कुछ अधिक काल कहा है वह सम्यक्त्व सहित बीच के मनुष्य भवों का समझना चाहिये। इस संबंध में कहा भी है - "दो वारे विजयाइसु गयस्स तिन्न च्चुए अहव ताई। अइरेगं नर भवियं।"
मिच्छादिट्ठी णं भंते! पुच्छा?
गोयमा! मिच्छादिट्ठी तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - अणाइए वा अपजवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपजवसिए। तत्थ णं जे से साइए सपंजवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं, अणंताओ उस्सप्पिणि ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवडं पोग्गल परियट्टू देसूणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मिथ्यादृष्टि कितने काल तक मिथ्यादृष्टि रूप में रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - १. अनादि अपर्यवसित २. अनादि-सपर्यवसित और ३. सादि-सपर्यवसित। इनमें से जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक अर्थात् काल की अपेक्षा से अनन्त उत्सर्पिणीअवसर्पिणियों तक और क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्तन तक मिथ्यादृष्टि पर्याय से युक्त रहता है।
विवेचन - जिसे जीवादि वस्तु तत्त्व का विपरीत बोध हो, जिसे सर्वज्ञ तीर्थंकरों में श्रद्धा विश्वास नहीं है वह मिथ्यादृष्टि कहलाता है। मिथ्या दृष्टि तीन प्रकार के कहे गये हैं - १. अनादि अपर्यवसितजो अनादि काल से मिथ्यादृष्टि हैं और अनंतकाल तक मिथ्यादृष्टि रहेगा जिसे कभी भी सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होगी ऐसे अभव्य जीव। २. अनादि सपर्यवसित - जो अनादि काल से मिथ्यादृष्टि है किन्तु भविष्य में सम्यग्दृष्टि बनेंगे ३. सादि सपर्यवसित - जो सम्यक्त्व को प्राप्त कर के फिर उससे गिर कर मिथ्यादृष्टि हो गये हैं किन्तु भविष्य में पुनः सम्यक्त्व प्राप्त करेंगे। इनमें सादि सपर्यवसित मिथ्यादृष्टि जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक मिथ्यादृष्टि रहता है। अन्तर्मुहूर्त के बाद उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति हो
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