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________________ २६० 여 प्रज्ञापना सूत्र 1000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 की मान्यतानुसार क्षपक श्रेणि को) प्राप्त करके तीनों वेदों का अन्तर्मुहूर्त में ही उपशम (या क्षय) कर देता है तब वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त तब सवेदी होता है । उत्कृष्ट कार्यस्थिति देशोन - कुछ कम अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल की कही गयी है क्योंकि उपशम श्रेणी से गिरा हुआ उत्कृष्ट इतने काल तक ही संसार में परिभ्रमण करता है अतः सादि सान्त सवेदक का उत्कृष्ट कालमान इतना ही घटित होता है । इत्थवेद णं भंते! इत्थवेदएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडि पुहुत्तमब्भहियं १, एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाई पुव्वकोडि पहुत्त मब्भहियाई २, एगेणं आएसेणं जहणणेणं एवं समयं, उक्कोसेणं चउदस पलिओवमाई पुव्वकोडि पुहुत्त मब्भहियाई ३, एगेणं आएसेणं जहणणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडि पुहुत्त मब्भहियं ४, एगेणं आएसेणं जहणणेणं एवं समयं, उक्कोसेणं पलिओवम पुहुत्तं पुव्वकोडि पुहुत्त मब्भहियं ५ । कठिन शब्दार्थ - आएसेणं - आदेश (अपेक्षा) से । - भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! स्त्रीवेदक जीव स्त्रीवेदक रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर हे गौतम! १. एक आदेश (अपेक्षा) से वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक २. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तकं ३. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूवकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक ४. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक सौ पल्योपम तक ५. एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक स्त्रीवेदी स्त्रीवेदीपर्याय में लगातार रहता है। विवेचन - स्त्री वेदी की पांच आदेशों (अपेक्षाओं ) से कायस्थिति इस प्रकार घटित होती है- सभी में जघन्य कायस्थिति एक समय की कही है जो इस प्रकार समझना चाहिए- कोई स्त्री उपशम श्रेणी में तीनों वेदों को उपशम करके वेद रहित होकर उस श्रेणी से गिरते स्त्री वेद का उदय एक समय अनुभव कर दूसरे समय काल करके देवों में उत्पन्न होती है वहाँ उसे पुरुषवेद प्राप्त होता है किन्तु स्त्री वेद नहीं । इस प्रकार जघन्य से एक समय मात्र स्त्रीवेद होता है। पांच ' Jain Education International आदेशानुसार स्त्री वेदी की उत्कृष्ट कार्यस्थिति इस प्रकार होती है - - For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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