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________________ २५४ प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखिजं कालं जाव खेत्तओ अंगुलस्स असंखिजइभाग। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बादर वनस्पतिकायिक बादर वनस्पतिकायिक रूप में कितने काल तक रहता है? उत्तर - हे गौतम! बादर वनस्पतिकायिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक अर्थात् काल से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक, क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रमाण बादर वनस्पतिकायिक के रूप में बना रहता है। पत्तेयसरीर बायरवणस्सइ काइए णं भंते! पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवम कोडाकोडीओ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक उक्त स्वपर्याय में कितने काल तक लगातार रहता है? उत्तर - हे गौतम! प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट सत्तर : कोटाकोटी सागरोपम तक प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक रूप में बना रहता है। णिगोए णं भंते! णिगोए त्ति कालओ केवच्चिर होइ? . गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं, अणंताओ उस्सप्पिणि ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अड्डाइजा पोग्गलपरियट्टा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! निगोद, निगोद के रूप में कितने काल तक लगातार रहता है? उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, काल से अनन्त उत्सर्पिणीअवसर्पिणियों तक, क्षेत्र से ढाई पुद्गल परावर्तन तक निगोद, निगोदपर्याय में बना रहता है। विवेचन - यहाँ पर निगोद शब्द से सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद दोनों को मिलाकर समुच्चय निगोद की कायस्थिति समझना चाहिए। बादरणिगोदे णं भंते! बादरणिगोदे त्ति पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवम कोडाकोडीओ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बादर निगोद, बादर निगोद के रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर - हे गौतम! बादर निगोद जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक बादर निगोद के रूप में बना रहता है। विवेचन - यहाँ पर बादर निगोद शब्द से साधारण वनस्पतिकायिक जीवों के शरीरों की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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