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________________ लेस्साए छट्टो उद्देसओ लेश्या पद का छठा उद्देशक लेश्या भेद कइ णं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! लेश्याएँ कितनी कही गयी हैं ? उत्तर - हे गौतम! लेश्याएँ छह कही गई हैं- कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । मनुष्यों में लेश्याएं मणुस्साणं भंते! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ । तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। : भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों में छह लेश्याएं होती हैं, वे इस प्रकार हैं- कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । मणुस्सीणं भंते! पुच्छा ? गोयमा! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हा जाव सुक्का । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? उत्तर - हे गौतम! मनुष्यस्त्रियों में छह लेश्याएं होती हैं- कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । कम्मभूमय मणुस्साणं भंते! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हा जाव सुक्का | भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? उत्तर - हे गौतम! कर्मभूमिक मनुष्यों में छह लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार हैं - कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । एवं कम्मभूमय मणुस्सीण वि । भावार्थ - इसी प्रकार कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों की भी लेश्याविषयक प्ररूपणा करनी चाहिए । भरहेरवय मणुस्साणं भंते! कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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