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________________ लेस्सापए पंचमो उद्देसओ लेश्या पद का पांचवां उद्देशक लेश्याओं के भेद कइणं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन! लेश्याएँ कितनी हैं? उत्तर - हे गौतम! लेश्याएं छह हैं - कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या। से णूणं भंते! कण्हलेस्सा णीललेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुजो-भुजो परिणमइ? .. इत्तो आढत्तं जहा चउत्थओ उद्देसओ तहा भाणियव्वं जाव वेरुलिय मणि दिर्सेतो त्ति ॥५२८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या कृष्ण लेश्या नील लेश्या को प्राप्त होकर उसी के स्वरूप में, उसी के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में पुनः पुनः परिणत हो जाती हैं ? उत्तर - हे गौतम! यहाँ से प्रारम्भ करके यावत् वैडूर्यमणि के दृष्टान्त तक जैसे चतुर्थ उद्देशक में कहा है, वैसे ही कहना चाहिए। ___ लेश्याओं के परिणाम भाव से णूणं भंते! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव णो ताफासत्ताए भुजो-भुजो परिणमइ? हंता गोयमा! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए, णो तावण्णत्ताए, णो तागंधत्ताए, णो तारसत्ताए, णो ताफासत्ताए भुजो-भुजो परिणमइ। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ०? गोयमा! आगार भाव मायाए वा से सिया, पलिभाग भाव मायाए वा से सिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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