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________________ २२४ प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या के उत्कृष्ट स्थानों से लेकर यावत् शुक्ल लेश्या के उत्कृष्ट स्थानों में द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े कापोत लेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं। उनसे नील लेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं। इसी प्रकार जघन्य स्थानों के अल्पबहुत्व की तरह उत्कृष्ट स्थानों का भी अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि 'जघन्य' शब्द के स्थान में यहाँ 'उत्कृष्ट' शब्द कहना चाहिए। एएसिणं भंते! कण्हलेस्सठाणाणं जाव सुक्कलेस्सठाणाण य जहण्णउक्कोसगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए, जहण्णगा णीललेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज्ज गुणा, एवं कण्हतेउपम्हलेस्सठाणा, जहण्णगा सुक्कलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज गुणा, जहण्णएहितो सुक्कलेस्सठाणेहितो दव्वट्ठयाए उक्कोसा काउलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिजगुणा, उक्कोसा णीललेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज गुणा, एवं कण्हतेउपम्हलेस्सट्टाणा, उक्कोसा सुक्कलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज गुणा। पएसट्टयाए-सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सठाणा पएसट्टयाए, जहण्णगा णीललेस्सठाणा पएसट्ठयाए असंखिज गुणा, एवं जहेव दव्वट्ठयाए तहेव पएसट्ठयाए वि भाणियव्वं, णवरं पएसट्ठयाएत्ति अभिलावविसेसो।दव्वट्ठपएसट्ठयाए-सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए, जहण्णगा णीललेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज गुणा, एवं कण्हतेउपम्हलेस्सट्टाणा, जहण्णया सुक्कलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज गुणा, जहण्णएहिंतो सुक्कलेस्सठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए उक्कोसा काउलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज्ज गुणा, उक्कोसा णीललेस्सठाणा दवट्ठयाए असंखिज गुणा, एवं कण्हतेउपम्हलेस्सट्टाणा, उक्कोसगा सुक्कलेस्सठाणा दव्वट्ठयाए असंखिज गुणा, उक्कोसएहितो सुक्कलेस्सठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए जहण्णगा काउलेस्सठाणा पएसट्टयाए अणंतगुणा, जहण्णगा णीललेस्सठाणा पएसट्टयाए असंखिज गुणा, एवं कण्हतेउपम्हलेस्सट्ठाणा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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