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सत्तरहवाँ लेश्या पद-चतुर्थ उद्देशक - लेश्या स्थान द्वार
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परमाणु अनन्तानन्त संख्या वाले होते हैं। इसी प्रकार नील लेश्या से यावत् शुक्ल लेश्या तक प्रदेशों का कथन करना चाहिए।
विवेचन - कृष्ण आदि छहों लेश्याओं में से प्रत्येक के योग्य परमाणु अनन्त अनन्त होने से उन्हें अनन्त प्रदेशी कहा है।
१२. अवगाढ़ द्वार कण्हलेस्सा णं भंते! कइपएसोगाढा पण्णत्ता? गोयमा! असंखिज पएसोगाढा पण्णत्ता, एवं जाव सुक्कलेस्सा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या आकाश के कितने प्रदेशों में अवगाढ़ (व्याप्त करके रही हुई) है?
उत्तर - हे गौतम! कृष्ण लेश्या असंख्यात आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ है। इसी प्रकार शुक्ल लेश्या तक असंख्यात प्रदेशावगाढ़ समझनी चाहिए।
विवेचन - यद्यपि एक-एक लेश्या की वर्गणाएं अनन्त-अनन्त हैं फिर भी उन सब का अवगाहन असंख्यात आकाश प्रदेशों में ही हो जाता है। क्योंकि सम्पूर्ण लोकाकाश के असंख्यात ही प्रदेश हैं इसलिए कृष्ण आदि लेश्याएं असंख्यात प्रदेशावगाढ़ कही गई है।
१३. वर्गणा द्वार . कण्हलेस्साए णं भंते! केवइयाओ वग्गणाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! अणंताओ वग्गणाओ पण्णत्ताओ। एवं जाव सुक्क लेस्साए॥५२३॥ ___भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या की कितनी वर्गणाएं कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! कृष्ण लेश्या की अनन्त वर्गणाएं कही गई हैं। इसी प्रकार यावत् शुक्ल लेश्या तक की वर्गणाओं का कथन करना चाहिए।
विवेचन - औदारिक शरीर आदि के योग्य परमाणुओं के समूह के समान कृष्ण लेश्या के योग्य परमाणुओं के समूह को कृष्ण लेश्या की वर्गणा कहा गया है। जो वर्णादि के भेद से अनंत होती है। कृष्ण लेश्या की तरह ही शेष सभी लेश्याओं की भी वर्गणाएं अनंत-अनंत होती हैं।
१४ लेश्या स्थान द्वार केवइया णं भंते! कण्हलेस्सा ठाणा पण्णत्ता? गोयमा! असंखिज्जा कण्हलेस्सा ठाणा पण्णत्ता। एवं जाव सुक्कलेस्सा॥५२४॥
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