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प्रज्ञापना सूत्र
प्रश्न - हे भगवन्! क्या पद्म लेश्या का आस्वाद ऐसा ही होता है ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। पद्म लेश्या तो स्वाद (रस) में इससे भी इष्टतर यावत् अत्यधिक मनाम कही गयी है।
सुक्कलेस्सा णं भंते! केरिसिया अस्साएणं पण्णत्ता? .
गोयमा! से जहाणामए गुले इ वा खंडे इ वा सक्करा इ वा मच्छंडिया इ वा पप्पडमोयए इ वा भिसकंदए इ वा पुप्फुत्तरा इ वा पउमुत्तरा इ वा आयंसिया इ वा सिद्धत्थिया इ वा आगासफालिओवमा इ वा उवमा इ वा अणोवमा इ वा।
भवेयारूवा?
गोयमा! णो इणढे समढे, सुक्कलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव० पियतरिया चेव० .. मणामयरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता॥५२०॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! शुक्ल लेश्या आस्वाद में कैंसी है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई गुड़ हो, खांड-देशी शक्कर हो, शक्कर हो, मिश्री (मत्स्यण्डी) हो हो, पर्पट मोदक (एक प्रकार का मोदक अथवा मिश्री का पापड़ और लड्डू) हो, भिस कन्द हो, पुष्पोत्तर नामक मिष्टान्न हो, पद्मोत्तरा नाम की मिठाई हो, आदंशिका नामक मिठाई हो या सिद्धार्थका नाम की मिठाई हो, आकाशस्फटिकोपमा नामक मिठाई हो, अथवा अनुपमा नामक मिष्टान्न हो, इनके . स्वाद के समान शुक्ल लेश्या का आस्वाद (रस) कहा गया है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या शुक्ल लेश्या स्वाद में ऐसी ही होती है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शुक्ल लेश्या स्वाद में इनसे भी इष्टतर, अधिक कान्त (कमनीय) अधिक प्रिय एवं अत्यधिक मनोज्ञ, मनाम कही गई है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में छह लेश्याओं के रसों का निरूपण किया गया है।
४. गंध द्वार कइ णं भंते! लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ। तंजहा - कण्हलेस्सा, णीललेस्सा, काउलेस्सा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! दुर्गन्ध वाली कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! तीन लेश्याएं दुर्गन्ध वाली कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या।
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