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प्रज्ञापना सूत्र
वा अक्खोडयाण वा चोराण वा बोराण वा तिंदुयाण वा अपक्काणं अपरियागाणं वण्णेणं अणुववेयाणं गंधेणं अणुववेयाणं फासेणं अणुववेयाणं।
भवेयारूवा?
गोयमा! णो इणढे समढे जाव एत्तो अमणामतरिया चेव काउलेस्सा अस्साएणं पण्णत्ता॥५१७॥
कठिन शब्दार्थ - अपक्काणं - अपक्व, अपरियागाणं - पूरे पके हुए न हों। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कापोत लेश्या आस्वाद में कैसी है ?
उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई आम्रों का, आम्राटक के फलों का, बिजौरों का, बिल्वफलों (बेल के फलों) का, कवीठों का, भट्ठों का, पनसों (कटहलों) का, दाडिमों (अनारों) का, पारावत नामक फलों का, अखरोटों का, प्रौढ़-बड़े बेरों का, बेरों का, तिन्दुकों के फलों का; जो कि अपक्व हों, पूरे पके हुए न हों, वर्ण से रहित हों, गन्ध से रहित हों और स्पर्श से रहित हों, इनके आस्वाद-रस के समान कापोत लेश्या का रस-स्वाद का कहा गया है।
प्रश्न - हे भगवन्! क्या कापोत लेश्या रस से इसी प्रकार की होती है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। कापोत लेश्या स्वाद में इनसे भी अनिष्टतर यावत् अत्यधिक अमनाम कही गयी है।
तेउलेस्सा णं भंते! पुच्छा?
गोयमा! से जहाणामए अंबाण वा जाव पक्काणं परियावण्णाणं वण्णेणं उववेयाणं पसत्थेणं जाव फासेणं जाव एत्तो मणामयरिया चेव तेउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता॥५१८॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तेजो लेश्या आस्वाद में कैसी है?
उत्तर - हे गौतम! जैसे किन्हीं आमों के यावत् (आम्राटकों से लेकर) तिन्दुकों तक के फल जो कि परिपक्व हों, पूर्ण परिपक्व अवस्था को प्राप्त हों, परिपक्व अवस्था के प्रशस्त वर्ण से, गन्ध से और स्पर्श से युक्त हों, इनका जैसा स्वाद होता है, वैसा ही तेजो लेश्या का है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या तेजो लेश्या आस्वाद से इसी प्रकार की होती है ?
उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। तेजो लेश्या स्वाद में इनसे भी इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है।
पम्हलेस्साए पुच्छा?
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