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________________ १८६ 00000000000000000 प्रज्ञापना सूत्र असंखिज्जगुणाओ, काउलेस्साओ असंखिज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्साओ जोइसिणीओ देवीओ संखिज्ज KÖHÖHÖHÖHÖN ÖNÖKÖKÖKÖKÖN ÖHÖHÖNÖKÖKÖÖHÖN गुणा ॥ ४९५ ॥ - भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! इन कृष्ण लेश्या वाली से लेकर यावत् तेजो लेश्या वाली भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी एवं वैमानिक देवियां में से कौन देवियां, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़ी तेजो लेश्या वाली वैमानिक देवियाँ हैं, उनसे तेज़ो लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ असंख्यात गुणी हैं, उनसे कापोत लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ असंख्यात गुणी हैं, उनसे नील लेश्या वाली भवनवासी देवियाँ विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाली भवनवासी देवियां विशेषाधिक हैं, उनसे तेजो लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ असंख्यात गुणी अधिक हैं, उनसे कापोत लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ असंख्यात गुणी हैं, उनसे नील लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ विशेषाधिक हैं। उनसे तेजोलेश्या वाली ज्योतिषी देवियाँ संख्यात गुणी हैं। एएसि णं भंते! भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं देवाण य देवीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? Jain Education International गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखिज्ज गुणा, तेउलेस्सा असंखिज्जगुणा, तेउलेस्साओ वेमाणिय देवीओ संखिज्जगुणाओ, तेउलेस्सा भवणवासी देवा असंखिज्ज गुणा, तेउलेस्साओ भवणवासिणिओ देवीओ संखिज्जगुणाओ, काउलेस्सा भवणवासी असंखिज्ज गुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ भवणवासिणीओ० संखिज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्सा वाणमंतरा संखिज्जगुणा, तेउलेस्साओ वाणमंतरीओ० संखिज्जगुणाओ, काउलेस्सा वाणमंतरा असंखिज्ज गुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ वाणमंतरीओ० संखिज्जगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्सा जोइसिया० संखिज्ज गुणा, तेउलेस्साओ जोइसिणीओ० संखिज्जगुणाओ ॥ ४९६ ॥ For Personal & Private Use Only : www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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