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सत्तरहवाँ लेश्या पद-प्रथम उद्देशक - पृथ्वीकायिक आदि में सप्त द्वार प्ररूपणा
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और बार-बार उच्छ्वास लेते हैं जबकि अल्पशरीर वाले पृथ्वीकायिक के अल्प शरीर होने से अल्प आहार और अल्प उच्छ्वास होता है। आहार और उच्छ्वास का कदाचित्पना अपर्याप्त अवस्था की अपेक्षा समझना चाहिए। . पुढविकाइया णं भंते! सव्वे समवेयणा पण्णता? हंता गोयमा! सव्वे समवेयणा। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ?
गोयमा! पुढविकाइया सव्वे असण्णी असण्णिभूयं अणिययं वेयणं वेयंति, से तेणद्वेणं गोयमा! पुढविकाइया सव्वे समवेयणा।
कठिन शब्दार्थ - अणिययं - अनियत। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या सभी पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले होते हैं?
उत्तर - हाँ गौतम! सभी पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले होते हैं। प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सभी पृथ्वीकायिक असंज्ञी होते हैं। वे असंज्ञीभूत और अनियत वेदना वेदते हैं। इस कारण हे गौतम! सभी पृथ्वीकायिक समवेदना वाले होते हैं।
पुढविकाइया णं भंते! सव्वे समकिरिया? हंता गोयमा! पुढविकाइया सव्वे समकिरिया।
से केणटेणं०? - गोयमा! पुढविकाइया सव्वे माइमिच्छादिट्ठी, तेसिं णियइयाओ पंच किरियाओ कज्जति, तंजहा - आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अप्पच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया य, से तेणडेणं गोयमा!०।
कठिन शब्दार्थ-णियइयाओ - नियत रूप से। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सभी पृथ्वीकायिक समक्रिया वाले होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! सभी पृथ्वीकायिक समक्रिया वाले होते हैं। प्रश्न- हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
उत्तर - हे गौतम! सभी पृथ्वीकायिक मायी-मिथ्यादृष्टि होते हैं, उनके नियत (निश्चित) रूप से पांचों क्रियाएँ होती हैं। वे इस प्रकार हैं - १. आरम्भिकी २. पारिग्रहिकी ३. मायाप्रत्यया ४.
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