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सत्तरसमं लेस्सापयं-पढमो उद्देसओ
सत्तरहवाँ लेश्या पद- प्रथम उद्देशक
उत्थानिका - प्रज्ञापना सूत्र के सोलहवें पद में प्रयोग परिणाम का वर्णन किया गया। परिणाम की समानता से इस सतरहवें पद में लेश्या परिणाम का कथन किया जाता है। 'लिश्यते आत्मा कर्मणा सह अनया' - जिसके द्वारा आत्मा कर्मों से लिप्त होती है उसे लेश्या कहते हैं । अर्थात् कृष्णादि द्रव्यों के सान्निध्य से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष लेश्या कहलाती है। कहा भी है कि -
"कृष्णादि द्रव्य साचिव्यात्, परिणामो य आत्मनः ।
स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्या शब्दः प्रवर्त्तते ॥ १॥"
स्फटिक मणि सफेद होती है, उसमें जिस रंग का डोरा पिरोया जाय वह उसी रंग की दिखाई देती है । इसी प्रकार शुद्ध आत्मा के साथ जिससे कर्मों का सम्बन्ध हो उसे लेश्या कहते हैं । द्रव्य और भाव की अपेक्षा लेश्या दो प्रकार की है। द्रव्य लेश्या कर्म वर्गणा रूप तथा कर्म निष्यन्द रूप एवं योग परिणाम रूप हैं। ऐसा ग्रन्थों में बतलाया गया है किन्तु योग के साथ लेश्या का अन्वय व्यतिरेक देखा जाता है इससे लेश्या को योग निमित्तक अर्थात् योग के अन्तर्गत द्रव्य रूप मानना उचित लगता है। भाव लेश्या से खींचे गये पुद्गल जो कि योग के अन्तर्गत माने गये हैं, वे द्रव्य लेश्या कहलाते हैं । द्रव्य लेश्या वर्णादि से सहित होने से रूपी कहलाती है । तत्त्वार्थ सूत्र में तो बतलाया गया है कि " कषायानुरञ्जित योग परिणामो लेश्या" आत्मा में रहे हुए क्रोधादि कषाय को लेश्या बढ़ाती है। योगान्तर्गत पुद्गलों में कषाय को बढ़ाने की शक्ति रहती है । जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि होती है । द्रव्य लेश्या के छह भेद हैं। मनुष्य और तिर्यंच में द्रव्य लेश्या का परिवर्तन होता रहता है । देवता और नैरयिक में द्रव्य लेश्या अवस्थित होती है।
भाव लेश्या - योगान्तर्गत कृष्णादि द्रव्य लेश्या के संयोग से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष भाव लेश्या कहलाती है। आत्मा के कषाय रञ्जित या अरञ्जित उपयोग एवं वीर्य रूप परिणाम अरूपी होने से वे भाव लेश्या कहलाते हैं। इसके दो भेद हैं - १. विशुद्ध भाव लेश्या और २. अविशुद्ध · भाव लेश्या । अकलुषित द्रव्य लेश्या के सम्बन्ध होने पर कषाय के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होने वाला आत्मा का शुभ परिणाम अविशुद्ध भाव लेश्या है। इनके छह भेद हैं। इनमें से कृष्ण, नील और कपोत अविशुद्ध भाव लेश्या है और तेजो, पद्म और शुक्ल, यह विशुद्ध भाव लेश्या कहलाती है।
इस लेश्या पद में छह उद्देशक हैं। उसमें से प्रथम उद्देशक के अर्थ को संग्रह करने वाली गाथा इस प्रकार है -
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