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________________ १२८ प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते। तंजहा - पओग गई १, तत गई २, बंधणछेयण गई ३, उववाय गई ४, विहाय गई ५। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का कहा गया है ? . उत्तर - हे गौतम! गतिप्रपात पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - १. प्रयोग गति २. तत गति ३. बन्धनछेदन गति ४. उपपात गति और ५. विहायो गति। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गति प्रपात का प्रतिपादन किया गया है। गति का अर्थ है - गमन या प्राप्ति। प्राप्ति दो प्रकार की कही गयी है - १. देशान्तर और २. पर्यायान्तर। एक देश से दूसरे देश को प्राप्त होना या एक पर्याय का त्याग कर दूसरे पर्याय को प्राप्त होना गति है। गति का प्रपात गतिं प्रपात कहलाता है। गति प्रपात के प्रयोग गति आदि पांच भेद बताये गये हैं। से किं तं पओग गई? पओगगई पण्णरसविहा पण्णत्ता। तंजहा - सच्चमणप्पओगगई, एवं जहा पओगो भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा। जाव कम्मग सरीरं कायप्पओग गई। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! प्रयोग गति कितने प्रकार की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! प्रयोग गति पन्द्रह प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - सत्यमनःप्रयोग गति यावत् कार्मण शरीर कायप्रयोग गति। जिस प्रकार प्रयोग पन्द्रह प्रकार का कहा गया है, उसी प्रकार यह गति भी पन्द्रह प्रकार की कहनी चाहिए। विवेचन - प्रयोग रूप गति प्रयोग गति है। प्रयोग के पन्द्रह भेदों के अनुसार प्रयोगगति भी पन्द्रह प्रकार की है। यह देशान्तर प्राप्ति रूप है। जीवाणं भंते! कइविहा पओगगई पण्णत्ता? गोयमा! पण्णरसविहा पण्णत्ता। तंजहा - सच्चमणप्पओगगई जाव कम्मग सरीर कायप्पओगगई। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीवों की प्रयोग गति कितने प्रकार की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! जीवों की प्रयोग गति पन्द्रह प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - सत्यमनःप्रयोग गति यावत् कार्मण शरीर प्रयोग गति। णेरडयाणं भंते! कइविहा पओगगई पण्णत्ता? गोयमा! एक्कारसविहा पण्णत्ता। तंजहा - सच्चमणप्पओग गई, एवं उबउजिऊण जस्स जइविहा तस्स तइविहा भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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