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________________ ११० गोयमा ! एक्कारसविहे पओगे पण्णत्ते । तंजहा सच्च मणप्पओगे जाव असच्चामोस वइप्पओगे, वेडव्वियसरीर कायप्पओंगे, वेडव्वियमीससरीर कायप्पओगे, कम्मासरीर कायप्पओगे । प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - प्रश्न- हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं? - उत्तर हे गौतम! नैरयिकों के ग्यारह प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं १ सत्यमनः प्रयोग यावत् ८ असत्यामृषावचन - प्रयोग, ९ वैक्रिय शरीर काय-प्रयोग, १० वैक्रिय मिश्र शरीर काय- प्रयोग और ११ कार्मण शरीर काय - प्रयोग | - Jain Education International एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं । भावार्थ - इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक के प्रयोगों के विषय में समझना चाहिए। पुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा ! तिविहे पओगे पण्णत्ते । तंजहा ओरालियसरीर कायप्पओगे, ओरालियमीससरीर कायप्पओगे, कम्मासरीर कायप्पओगे य । एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, णवरं वाउकाइयाणं पंचविहे पओगे पण्णत्ते । तंजहा - ओरालियसरीर कायप्पओगे, ओरालियमीससरीर कायप्पओगे, वेडव्विए दुविहे, कम्मासरीर कायप्पओगे य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिकों के तीन प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं १. औदारिक शरीर काय - प्रयोग २. औदारिक मिश्र शरीर काय प्रयोग और ३. कार्मण शरीर कायप्रयोग। इसी प्रकार अप्कायिकों से लेकर वनस्पतिकायिकों तक समझना चाहिए । विशेषता यह है कि वायुकायिकों के पांच प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं १. औदारिक शरीर काय - प्रयोग २. औदारिक मिश्र शरीर काय प्रयोग ३. वैक्रिय शरीर काय प्रयोग ४. वैक्रिय मिश्र शरीर का प्रयोग तथा ५. कार्मण शरीर काय प्रयोग । - बेइंदियाणं पुच्छा ? गोयमा ! चडव्विहे पओगे पण्णत्ते । तंजहा - असच्चामोस वइप्पओगे, ओरालियसरीर कायप्पओगे, ओरालियमीससरीर कायप्पओगे, कम्मासरीर कायप्पओगे । एवं जाव चउरिदियाणं । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं? For Personal & Private Use Only £ www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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