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प्रज्ञापना सूत्र
है। अथवा आत्म-प्रदेशों के. परिस्पन्दन (कंपन) को प्रयोग कहते हैं अर्थात् वीर्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम से मन, वचन और कायवर्गणा के पुद्गलों का आलम्बन ले कर आत्म प्रदेशों में होने वाले परिस्पंद, कंपन या हलन-चलन को प्रयोग कहते हैं। भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशक १ में प्रयोग के स्थान पर योग शब्द है।
पन्नवणा सूत्र में योग के स्थान पर प्रयोग शब्द है। इन पन्द्रहप्रयोगों को प्रयोगगति भी कहा जाता है जो इस प्रकार है
१. सत्यमनःप्रयोग - मन का जो व्यापार सत् अर्थात् सज्जन पुरुष या साधुओं के लिये हितकारी हो, उन्हें मोक्ष की ओर ले जाने वाला हो उसे सत्यमनःप्रयोग कहते हैं अथवा जीवादि पदार्थों के अनेकान्त रूप यथार्थ विचार को सत्य मनःप्रयोग कहते हैं।
२. असत्य मनःप्रयोग - सत्य से विपरीत अर्थात् संसार की ओर ले जाने वाले मन के व्यापार को असत्य मनःप्रयोग कहते हैं अथवा जीवादि पदार्थ नहीं हैं, एकान्त सत् हैं इत्यादि एकान्त रूप मिथ्या विचार असत्य मनःप्रयोग है। ...
३. सत्यमृषा मनःप्रयोग - व्यवहार नय से ठीक होने पर भी निश्चय नय से जो विचार पूर्ण सत्य न हो, जैसे - किसी उपवन में धव, खैर, पलाश आदि के कुछ पेड़ होने पर भी अशोकवृक्ष अधिक होने से उसे अशोक वन कहना। वन में अशोकवृक्षों के होने से यह बात सत्य है और धव आदि के वृक्ष होने से मृषा (असत्य) भी है।
४. असत्यामृषा मनःप्रयोग - जो विचार सत्य नहीं है और असत्य भी नहीं है उसे असत्यामृषा मनःप्रयोग कहते हैं। किसी प्रकार का विवाद खड़ा होने पर वीतराग सर्वज्ञ के बताए हुए सिद्धान्त के अनुसार विचार करने वाला आराधक कहा जाता है उसका विचार सत्य है। जो व्यक्ति सर्वज्ञ के सिद्धान्त से विपरीत विचरता है, जीवादि पदार्थों को एकान्त नित्य आदि बताता है वह विराधक है। उसका विचार असत्य है। जहाँ वस्तु को सत्य या असत्य किसी प्रकार सिद्ध करने की इच्छा न हो केवल वस्तु का स्वरूप मात्र दिखाया जाय, जैसे - देवदत्त! घड़ा लाओ इत्यादि चिन्तन में वहाँ सत्य या असत्य कुछ नहीं होता। आराधक विराधक की कल्पना भी वहाँ नहीं होती। इस प्रकार के विचार को असत्यामृषा मनःप्रयोग कहते हैं। यह भी व्यवहार नय की अपेक्षा है। निश्चय नय से तो इसका सत्य या असत्य में समावेश हो जाता है। ..
ऊपर लिखे मनःप्रयोग के अनुसार वचन प्रयोग के भी चार भेद हैं - ५. सत्य वचन प्रयोग ६. असत्य वचन प्रयोग ७. सत्यमृषा वचन प्रयोग ८. असत्यामृषा वचन प्रयोग।
९. औदारिक शरीर काय प्रयोग - काय का अर्थ है समूह। औदारिक शरीर पुद्गल स्कन्धों का
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