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________________ षोडशं (सोलसमं) पओग पयं सोलहवां प्रयोग पद पन्द्रहवें पद में मोक्ष का कारण होने से और इन्द्रिय वालों को ही लेश्यादि परिणाम का सद्भाव होने से विशेष रूप से इन्द्रिय परिणाम का कथन किया गया है तत्पश्चात् परिणाम की समानता होने से इस सोलहवें पद में प्रयोग परिणाम का प्रतिपादन किया जाता है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है - प्रयोग के भेद कइविहे णं भंते! पओगे पण्णत्ते? गोयमा! पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते। तंजहा - सच्च मणप्पओगे १, असच्च मणप्पओगे २, सच्चामोस मणप्पओगे ३, असच्चामोस मणप्पओगे ४, एवं वइप्पओगे वि चउहा ८, ओरालियसरीर कायप्पओगे ९, ओरालियमीससरीर कायप्पओगे १०, वेउव्वियसरीर कायप्पओगे ११, वेउव्वियमीससरीर कायप्पओगे १२, आहारगसरीर कायप्पओगे १३, आहारगमीससरीर कायप्पओगे १४, कम्मासरीर कायप्पओगे १५ ॥ ४६०॥ .. कठिन शब्दार्थ - पओगे - प्रयोग। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! प्रयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? . उत्तर - हे गौतम! प्रयोग पन्द्रह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार हैं - १. सत्यमनःप्रयोग २. असत्य (मृषां) मनःप्रयोग ३. सत्य-मृषा (मिश्र) मनःप्रयोग ४. असत्या-मृषा मनःप्रयोग, इसी प्रकार वचन प्रयोग भी चार प्रकार का है - ५. सत्य वचन प्रयोग ६. मृषा वचन प्रयोग ७. सत्यामृषा वचन प्रयोग और ८. असत्यामृषा वचन प्रयोग ९. औदारिक शरीरकाय-प्रयोग १०. औदारिक मिश्र शरीर काय प्रयोग ११. वैक्रिय शरीर काय-प्रयोग १२. वैक्रिय मिश्र शरीर काय प्रयोग १३. आहारक शरीर काय-प्रयोग १४. आहारक मिश्र शरीर काय-प्रयोग और १५. कार्मण शरीर काय-प्रयोग। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पन्द्रह प्रकार के प्रयोगों का कथन किया गया है। 'प्र' उपसर्ग पूर्वक युज् धातु से 'प्रयोग' शब्द बना है। जिसका अर्थ है-आत्मा जिस कारण से प्रकर्ष रूप से क्रियाओं से युक्त या संबंधित हो अथवा साम्परायिक और ईर्यापथ कर्म से संयुक्त-संबद्ध हो, वह प्रयोग कहलाता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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