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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - बारहवां भावेन्द्रिय द्वार
रोक
भावार्थ - सनत्कुमार से लेकर ग्रैवेयक देव तक की अतीतादि भावेन्द्रियों का कथन नैरयिकों की वक्तव्यता के समान करना चाहिए।
विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स अतीता अणंता, बद्धेल्लगा पंच, पुरेक्खडा पंच वा दस वा पण्णरस वा संखिज्जा वा। सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अणंता, बद्धेल्लगा पंच।
भावार्थ - विजय, वैजयन्त, जयन्त एवं अपराजित देव की अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं, बद्ध पांच हैं और पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ पांच, दस, पन्द्रह या संख्यात होंगी।
सर्वार्थसिद्धदेव की अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध पांच हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! पंच। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ पांच हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एक जीव की अपेक्षा अतीत, वर्तमान और भविष्य काल की भावेन्द्रियों का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार हैं -
एक-एक नारकी के नैरयिक ने भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में ५, १०, १५, यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। एक-एक असुरकुमार ने भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में पांच, छह यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। इसी तरह नव निकाय, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और पहले दूसरे देवलोक के एक-एक देवता का कह देना चाहिए। तीसरे देवलोक से नवग्रैवेयक तक में नारकी की तरह कह देना चाहिए। चार अनुत्तर विमान के एक-एक देवता ने भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में ५, १०, १५ यावत् संख्यात होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देवता ने भावेन्द्रियाँ अतीतकाल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में पांच होंगी। पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रिय के एक-एक जीव ने भावेन्द्रियाँ अतीतकाल में अनन्त की, वर्तमान में एकेन्द्रिय के एक, बेइन्द्रिय में दो, तेइन्द्रिय में तीन, चउरिन्द्रिय में चार हैं और भविष्य में छह, सात यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी किन्तु पृथ्वी, पानी, वनस्पति में ५, ६, ७ संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। तिर्यंच पंचेन्द्रिय असुरकुमार की तरह कहना चाहिए। एक-एक संज्ञी मनुष्य ने भावेन्द्रियां अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके पांच छह यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी।
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