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________________ ९८ प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के भावेन्द्रियाँ अतीत में अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्या गोयमा! पंच। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उनकी कितनी भावेन्द्रियाँ बद्ध (वर्तमान में) हैं? उत्तर - हे गौतम! उनकी बद्ध भावेन्द्रियाँ पांच हैं। केवइया पुरेक्खडा? पंच वा दस वा एक्कारस वा संखिज्जा वा असंखिज्जा वा अणंता वा। .. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! उनकी पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ पांच, दस, ग्यारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगी। एवं असुरकुमारस्स वि, णवरं पुरेक्खड़ा पंच वा छ वा संखिज्जा वा असंखिज्जा .. वा अणंता वा। एवं जाव थणियकुमारस्स वि। भावार्थ - इसी प्रकार असुरकुमारों की भावेन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। विशेषता यह है : कि पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ पांच, छह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगी। ' इसी प्रकार स्तनितकुमार तक की भावेन्द्रियों के विषय में समझ लेना चाहिए। एवं पुढविकाइय आउकाइय वणस्सइकाइयस्स वि, बेइंदिय तेइंदिय चउरिदियस्स वि। तेउकाइय वाउकाइयस्स वि एवं चैव, णवरं पुरेक्खडा छ वा सत्त वा संखिजा वा असंखिजा वा अणंता वा। भावार्थ - इसी प्रकार एक-एक पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय की तरह बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय की, तेजस्कायिक एवं वायुकायिक की अतीतादि भावेन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इनकी पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ छह, सात, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जाव ईसाणस्स जहा असुरकुमारस्स, णवरं मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि त्ति भाणियव्वं। भावार्थ - पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक से लेकर यावत् ईशानदेव की अतीत आदि भावेन्द्रियों के विषय में असुरकुमारों की भावेन्द्रियों की प्ररूपणा की तरह कहना चाहिए। विशेषता यह है कि मनुष्य की पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ किसी की होंगी, किसी की नहीं होंगी, इस प्रकार सब पूर्ववत् कहना चाहिए। सणंकुमार जाव गेवेजगस्स जहा जेरइयस्स। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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