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________________ पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - अनेक जीवों की अपेक्षा ९३ stobo एवं जाव जोइसियत्ते वि, णवरं मणूसत्ते अतीता अणंता, केवइया बद्धेल्लगा? णस्थि, पुरेक्खडा असंखिज्जा। भावार्थ - इसी प्रकार यावत् ज्योतिषी देवत्व रूप में भी अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इनकी मनुष्यत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं? हे गौतम! नहीं हैं। इनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? हे गौतम! असंख्यात होंगी। एवं जाव गेवेजगदेवत्ते। सट्टाणे अतीता असंखिजा, केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! असंखिजा। भावार्थ - विजयादि चारों की सौधर्मादि देवत्व से लेकर यावत् ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में अतीत आदि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता इसी प्रकार है। इनकी स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हुई हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! असंख्यात हैं। . केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! असंखिज्जा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात होंगी। सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा संखिजा। भावार्थ - इन. चारों देवों की सर्वार्थसिद्ध देवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हुई हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात होंगी। सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते! णेरइयत्ते केवइया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अणंता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की रैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हुई हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! णत्थि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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