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- पांचवां विशेष पद - पृथ्वीकायिकों के पर्याय
उत्तर - गौतम! एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, किन्तु अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यात भाग हीन है अथवा संख्यात भाग हीन है अथवा संख्यात गुण हीन है, या असंख्यात गुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है या संख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यात गुण अधिक है अथवा असंख्यात गुण अधिक है।
ठिईए तिट्ठाणवडिए, सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए। जइ हीणे असंखिज्ज भागहीणे वा संखिज भागहीणे वा संखिज गुणहीणे वा। अह अब्भहिए असंखिज्जइ भागअब्भहिए वा संखिजइ भागअब्भहिए वा संखिज गुणअब्भहिए वा। वण्णेहिं, गंधेहिं, रसेहि, फासेहिं, मइअण्णाणपज्जवेहिं, सयअण्णाणपज्जवेहिं, अचक्खदंसण पजवेहिं छट्ठाणवडिए॥२५०॥
कठिन शब्दार्थ - तिट्ठाणवडिए - त्रिस्थानपतित। . भावार्थ - स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यात भाग हीन है, या संख्यात भाग हीन है, अथवा संख्यात गुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है, या संख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यात गुण अधिक है। वर्णों के पर्यायो गन्धों, रसों और स्पर्शों के पर्यायों) की अपेक्षा से, मति-अज्ञान-पर्यायों, श्रुत अज्ञान पर्यायों एवं अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से षट्स्थानपतित है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकायिक की अनन्त पर्यायों का निरूपण किया गया है।
मूलपाठ में अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित तथा समस्त वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से एवं मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से पूर्ववत् षट्स्थानपतित हीनाधिकता बता कर पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्त पर्याय : सिद्ध किये गए हैं। __ अवगाहना में चतुःस्थानपतित हीनाधिकता - एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से असंख्यात भाग, संख्यात भाग अथवा संख्यात गुण या असंख्यात गुण हीन होता है, अथवा असंख्यात भाग, संख्यात भाग अथवा संख्यात गुण या असंख्यात गुण अधिक होता है। यद्यपि पृथ्वीकायिक जीवों की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है, किन्तु अंगुल के असंख्यातवें भाग के भी असंख्यात भेद होते हैं, इस कारण पृथ्वीकायिक जीवों की पूर्वोक्त चतुःस्थानपतित हीनाधिकता में कोई विरोध नहीं है।
स्थिति में त्रिस्थानपतित हीनाधिकता - एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से असंख्यात भाग या संख्यात भाग हीन अथवा संख्यात गुण हीन होता है अथवा असंख्यात भाग अधिक, संख्यात
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