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________________ ३४ प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक सम्मूछिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। . पज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं अंतोमुहत्तूणाई। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक सम्मूछिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक सम्मूछिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्महर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम ४२००० वर्ष की कही गई है। गब्भवक्वंतिय भुयपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। ' भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम ! गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्व कोटि (करोड़ पूर्व) की कही गई है। अपजत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? ___ उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। पज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा॥ २३५॥ . ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्व कोटि (करोड़ पूर्व) की कही गई है। खहयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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