________________
‘ग्यारहवाँ भाषा पद - भाषा द्रव्यों के विभिन्न रूप
00000000000000000000000000000000
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
परिणाम वाले स्कन्धों में ही कर्कश आदि चा स्पर्श पाये जाते हैं। जहाँ कर्कश आदि स्पर्श होते हैं वहाँ वर्णादि बीस ही बोल पाये जाते हैं।
जाई फासओ सीयाइं गिण्हइ ताई किं एग गुण सीयाइं गिण्हइ जाव अणंत गुण सीयाइं गिण्हइ? ' गोयमा! एगगुणसीयाई वि गिण्हइ जाव अणंतगुण सीयाइं वि गिण्हइ, एवं उसिणणिद्धलुक्खाई जाव अणंतगुणाई वि गिण्हइ॥३९५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव स्पर्श से जिन शीत सा वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या वह एक गुण शीत स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण शीत स्पर्शवाले द्रव्यों को ग्रहण करता है? . उत्तर - हे गौतम! जीव एक गुण शीत द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् अनंत गुण शीत स्पर्श वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्श वाले यावत् अनंत गुण उष्ण आदि स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है तक कहना चाहिये। - जाई भंते! जाव अणंतगुण लुक्खाइं गिण्हइ ताई किं पुट्ठाइं गिण्हइ, अपुट्ठाई गिण्हइ?
गोयमा! पुवाइं गिण्हइ, णो अपुढाई गिण्हइ। कठिन शब्दार्थ - पुढाई - स्पृष्ट, अपुट्ठाई - अस्पृष्ट।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव जिन एक गुण काले यावत् अनंत गुण रूक्ष स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है तो क्या वह स्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है?
उत्तर - हे गौतम! जीव स्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता है। जाइं भंते! पढाइं गिण्हइ ताइं किं ओगाढाइंगिण्हइ, अणोगाढाइं गिण्हइ। गोयमा! ओगाढाइं गिण्हइ, णो अणोगाढाइं गिण्हइ। कठिन शब्दार्थ - ओगाढाइं - अवगाढ, अणोगाढाई - अनवगाढ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीव जिन स्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या वह अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है या अनवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है ? .. उत्तर - हे गौतम! जीव अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अनवगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता है।
जाई भंते! ओगाढाइं गिण्हइ ताइं किं अणंतरोगाढाइं गिण्हइ, परंपरोगाढाई गिण्हइ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org