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प्रज्ञापना सूत्र
से केणट्रेणं भंते! एवं वुच्चइ-'जीवा भासगा वि, अभासगा वि'?
गोयमा! जीवा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - संसार समावण्णगा य असंसार समावण्णगा य। तत्थ णं जे ते असंसार समावण्णगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अभासगा। तत्थ णं जे ते संसार समावण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - सेलेसी पडिवण्णगा य असेलेसी पडिवण्णगा य। तत्थ णं जे ते सेलेसी पडिवण्णगा ते णं अभासगा। तत्थ णं जे ते असेलेसी पडिवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-एगिंदिया य अणेगिंदिया य। तत्थ णं जे ते एगिंदिया ते णं अभासगा। तत्थ णं जे ते अणेगिंदिया ते दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - पजत्तगा य अपजत्तगा य। तत्थ णं जे ते अपजत्तगा ते णं अभासगा, तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा ते णं भासगा, से एएणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'जीवा भासगा वि अभासगा वि'॥३९२॥ . कठिन शब्दार्थ - भासगा - भाषक, सेलेसी पडिवण्णगा - शैलेशी प्रतिपन्नक।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यह आप किस प्रकार कहते हैं कि जीव भाषक भी है और अभाषक भी है ?
उत्तर - हे गौतम! जीव दो प्रकार कहे गये हैं-१. संसार समापनक (संसारी) और २. असंसार । समापन्नक (असंसारी)। उनमें से जो असंसार समापन्नक हैं वे सिद्ध हैं और सिद्ध अभाषक होते हैं। उनमें से जो संसारी (संसार समापन्नक) हैं वे दो प्रकार के हैं - शैलेशी प्रतिपन्नक और अशैलेशी प्रतिपन्नक। उनमें जो शैलेशी प्रतिपन्नक हैं वे अभाषक हैं। उनमें जो अशैलेशी प्रतिपन्नक हैं वे दो प्रकार के कहे गए हैं वे इस प्रकार हैं - एकेन्द्रिय - एक इन्द्रिय वाले और अनेकेन्द्रिय - अनेक इन्द्रिय वाले। उनमें से जो एकेन्द्रिय हैं वे अभाषक हैं। उनमें से जो अनेकेन्द्रिय है वे दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. पर्याप्तक और २. अपर्याप्तक। उनमें से अपर्याप्तक हैं वे अभाषक हैं। उनमें से जो पर्याप्तक हैं वे भाषक हैं। इसलिए हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जीव भाषक भी है और अभाषक भी है।
णेरइया णं भंते! किं भासगा, अभासगा? गोयमा! णेरइया भासगा वि, अभासगा वि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या नैरयिक भाषक हैं या अभाषक हैं? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक भाषक भी होते हैं और अभाषक भी होते हैं ? से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-णेरइया भासगा वि, अभासगा वि?'
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