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ग्यारहवाँ भाषा पद - भाषक और अभाषक की वक्तव्यता
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अणभिग्गहिया भासा, भासा य अभिग्गहम्मि बोद्धव्यां।
संसय करणी भासा, वोगड अव्योगडा चेव॥२॥ १. आमंत्रणी २. आज्ञापनी ३. याचनी ४. पृच्छनी ५. प्रज्ञापनी ६. प्रत्याख्यानी ७. इच्छानुलोमा ८. अनभिगृहीता (अणभिग्गहिया) ९. अभिगृहीता १०. संशयकरणी ११. व्याकृत (वोगडा), १२. अव्याकृत (अव्वोगडा)।
१. आमंत्रणी - 'हे देवदत्त!' इस प्रकार संबोधन रूप भाषा। २. आज्ञापनी - आज्ञा रूप भाषा जैसे - यह करो, उठो, बैठो। ३. याचनी - 'अमुक वस्तु दो' इस प्रकार याचना रूप भाषा। ४. पृच्छनी - अज्ञात अथवा संदिग्ध वस्तु का ज्ञान करने के लिए उस विषय के ज्ञाता से पूछना।
५. प्रज्ञापनी - विनीत जंन (शिष्यों) को उपदेश देना जिससे वे प्राणीवध से निवृत्त हों और दूसरे भव में दीर्घायु और नीरोग हों।
६. प्रत्याख्यानी - प्रत्याख्यान (पच्चक्खाण) करना या मांगने आदि पर निषेध करने रूप भाषा।
७. इच्छानुलोमा - कोई व्यक्ति किसी कार्य को शुरू करते हुए पूछे, उस पर यह कहना कि जैसी तुम्हारी इच्छा।
८. अनभिगृहीता (अणभिग्गहिया) - जिस भाषा से नियत का अर्थ निश्चय न हो। जैसे बहुत कार्य होने पर कोई किसी से पूछे कि अब क्या करूँ? इस पर यह कहना कि जो देखो सो करो।
९. अभिगृहीता (अभिग्गहिया) - जिस भाषा से नियत अर्थ का निश्चय हो। जैसे उपरोक्त प्रश्न के उत्तर में यह कहना कि अभी यह कार्य करो, यह मत करो।
१०. संशयकरणी - जो भाषा अनेक अर्थ वाली होने से श्रोता के मन में संशय उत्पन्न करती है जैसे सैंधव लाओ। सैंधव शब्द लवण, वस्त्र, पुरुष और घोड़े के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इस कारण श्रोता के मन में संशय उत्पन्न होता है कि इन चार वस्तुओं में से क्या लाने को कहा जा रहा है। . ११. व्याकृता (वोगडा) - प्रकट स्पष्ट अर्थ वाली भाषा। १२. अव्याकृता (अव्योगडा) - जो भाषा गंभीर शब्द अर्थ वाली होने से स्पष्ट न हो।
भाषक और अभाषक की वक्तव्यता जीवाणं भंते! किं भासगा, अभासगा? गोयमा! जीवा भासगा वि, अभासगा वि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या जीव भाषक है या अभाषक है? उत्तर - हे गौतम! जीव भाषक भी है और अभाषक भी है।
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