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चौथा स्थिति पद - एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति
पज्जत्तयाणं पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई
॥ २२८ ॥
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प्रश्न - हे भगवन् ! बादर वायुकायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट तीन हज़ार वर्ष की कहीं गई है।
प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गयी है ? उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन हजार वर्ष की कही गई है।
aruफइकाइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं ।
अपज्जत्तया णं पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
पज्जत्तयाणं पुच्छा ?
गोयमां! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई । सुम वणप्फइकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्ताणं पज्जत्ताण य पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की कही गई है।
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प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? हे गौतम! अपर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है।
उत्तर -
प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक वनस्पतिकायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
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