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ग्यारहवाँ भाषा पद - चार प्रकार की भाषा
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जा णेव आराहणी णेव विराहिणी णेवाराहणविराहिणी सा असच्चामोसा णामं चउत्थी भासा, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा॥३७३॥' __कठिन शब्दार्थ - आराहिणी - आराधिनी, विराहिणी - विराधिनी।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि अवधारिणी भाषा कदाचित् सत्य, कदाचित् मृषा, कदाचित् सत्यमृषा और कदाचित् असत्यामृषा होती है ?
उत्तर - हे गौतम! जो आराधिनी भाषा है वह सत्य है, जो विराधिनी भाषा है वह मृषा है। जो आराधनीविराधनी है वह सत्यमृषा है और जो न आराधनी है न विराधनी है और न आराधनी-विराधनी भाषा है वह असत्यामृषा है। हे गौतम! इस कारण से मैं ऐसा कहता हूँ कि अवधारिणी भाषा कदाचित् सत्य, कदाचित् मृषा, कदाचित् सत्यमृषा और कदाचित् असत्यमृषा होती है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अवधारिणी भाषा के चार भेद किये गये हैं -
१. सत्य भाषा - सत्-सत्पुरुषों-मुनियों या शिष्टजनों के लिए जो हितकारक हो अथवा इहलोक परलोक की आराधना करने में सहायक होने से जो मुक्ति प्राप्त कराने वाली है वह सत्य भाषा है।
२. मृषा भाषा - सत्य भाषा से विपरीत स्वरूप वाली भाषा मृषा भाषा है अर्थात् झूठ भाषा है।
३. सत्यामृषा भाषा - जिस भाषा में सत्य और असत्य दोनों मिश्रित हो अर्थात् जिसमें कुछ अंश सत्य हो और कुछ अंश असत्य हो, ऐसी मिश्रभाषा, सत्यामृषा कहलाती है।
४. असत्यामृषा भाषा - ऐसी भाषा जो न तो सत्य है न असत्य है और न सत्यामृषा है। यानी जिसमें इन तीनों भाषा में से किसी भाषा का लक्षण घटित न हो वह असत्यामृषा कहलाती है। इस भाषा का विषय आमंत्रण करना या आज्ञा देना आदि है। कहा है - . सच्चा हिया सयामिह संतो मुणयो गुणा पयत्था वा। तव्विवरीया मोसा मीसा जा तदुभय सहावा॥ अणहिगया तीसु वि सदो च्चिय केवलो असच्चमुसा॥ प्रश्न - आराधनी भाषा किसे कहते हैं ?
उत्तर - 'आराध्यते मोक्षमार्गोऽनया' - जिसके द्वारा सम्यग्-दर्शन आदि मोक्षमार्ग का आराधन होता है ऐसी भाषा आराधनी कहलाती है और आराधनी होने से वह सत्यभाषा कहलाती है। ___ प्रश्न - विराधनी भाषा किसे कहते हैं ?
उत्तर - "विराध्यते मुक्तिमार्गोऽनया' - जिसके द्वारा मुक्ति मार्ग की विराधना होती हो अर्थात् सम्यग्-दर्शन आदि मोक्षमार्ग के प्रतिकूल भाषा मृषा भाषा कहलाती है। विवाद के विषय में वस्तु का
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