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प्रज्ञापना सूत्र
जो बोली जाती हो उसे भाषा कहते हैं। भाषा वर्गणा के योग्य पुद्गलों को लेकर एवं उनको भाषा रूप में परिणत करके छोड़ना, ऐसे द्रव्य समूह को भाषा कहते हैं। - नोट - संस्कृत में तीन प्रकार 'स' होते हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - श-तालव्य, क्योंकि इसको बोलते समय जीभ तालु की तरफ लगती है, तालु की तरफ खींचती है। ष-मूर्धन्य-मूर्धा का अर्थ है मस्तक। इस 'ष' को बोलते समय जीभ ऊपर मस्तक की तरफ खींचती है। इसलिए इसको मूर्धन्य कहते हैं। स-दन्त्य-इसको बोलते समय जीभ दांतों पर लगती है इसलिए इसको दन्त्य कहते हैं। संस्कृत की तरह हिन्दी में भी यह 'स' तीन प्रकार का होता है उनके नाम इस प्रकार हैं - 'श'-तालवी, ष-मूर्धनी, स-दन्ती।
अर्धमागधी और प्राकृत में एक ही प्रकार का 'स' होता है। यथा - 'स' अतएव अर्धमागधी भाषा का शब्द है-"भासा"। इसकी संस्कृत छाया होती है भाषा। इस प्रकार अर्धमागधी भाषा की संस्कृत छाया करते समय यथा योग्य ध्यान रखना पड़ता है। अतएव अर्धमागधी भाषा को समझने के लिए संस्कृत इसकी सहायक है अतः आवश्यक है। ____ गौतम स्वामी ने भाषा विषयक जो छह प्रश्न पूछे हैं भगवान् ने उन्हीं छह वाक्यों को वापिस दोहराते हुए इस प्रकार उत्तर दिया-हाँ गौतम! तुम्हारा मनन और चिंतन सही है। तुम मानते हो तथा युक्ति पूर्वक सोचते हो कि भाषा अवधारिणी है यह मैं भी अपने केवलज्ञान से जानता हूँ। इसके पश्चात् भी तुम यह मानो कि भाषा अवधारिणी है, तुम निःसंदेह होकर चिंतन करो कि भाषा अवधारिणी है। यानी तुम्हारी मान्यता यथार्थ और निर्दोष है अत: तुमने पहले जैसा माना और सोचा था
उसी प्रकार मानो और सोचो कि भाषा अवधारिणी है। यह निर्णय हो जाने के बाद कि "भाषा __ अवधारिणी है" - यह भाषा सत्य है या असत्य आदि का निर्णय करने के लिए आगे पूछते हैं कि -
ओहारिणी णं भंते! भासा किं सच्चा, मोसा, सच्चामोसा, असच्चामोसा? गोयमा! सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अवधारिणी - अर्थ का बोध कराने वाली भाषा क्या सत्य, मृषा, सत्यमृषा या असत्यामृषा है?
उत्तर - हे गौतम! अवधारिणी भाषा कदाचित् सत्य होती है, कदाचित् मृषा होती है, कदाचित् सत्यमृषा होती है और कदाचित् असत्यामृषा होती है।
से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ-'ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा'?
गोयमा! आराहिणी सच्चा, विराहिणी मोसा, आराहणविराहिणी सच्चामोसा,
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