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________________ २९९ चरम पद - परमाणु पुद्गल आदि के चरम अचरम .00000000000000000000000000000000 . . . . . . . गोयमा! पंचपएसिए खंधे सिय चरिमे १, णो अचरिमे २, सिय अवत्तव्वए ३, णो चरिमाइं ४, णो अचरिमाइं ५, अवत्तव्बयाई ६, सिय चरिमे य अचरिमे य ७, णो चरिमे य अचरिमाइं च ८, सिय चरिमाइं च अचरिमे य ९, सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च १०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११ सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२, सिय चरिमाइं च अवत्तव्वए य १३, णो चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १५, णो अचरिमे य अवत्तव्वए य १५, णो अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६, णो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७, णो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८, णो चरिमे यं अचरिमे य अवत्तव्वए य १९, णो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २०, णो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१, णो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२, सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वए य २३, सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वयाई च २४, सिय चरिमाइं चं अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २५, णो चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइंच २६॥३६२॥ . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पञ्चप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में इन छब्बीस भंगों में से कौनसे और कितने भंग पाये जाते हैं ? उत्तर - हे गौतम! पंचप्रर्दो तक स्कन्ध १. कथंचित् चरम है २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य है किन्तु वह ४. न तो अनेक चरम रूप है, ५. न अनेक अचरम रूप है, ६. न ही अनेक अवक्तव्य रूप है किन्तु ७. कथञ्चित् चरम रूप और अचरम रूप है, वह ८. एक चरम और अनेक चरम रूप नहीं है, किन्तु ९. कथंचित् अनेक चरम रूप और एक अचरम रूप है, १०. कथंचित् अनेक चरम रूप और अनेक अचरम रूप है, ११. कथंचित् एक चरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है, १२. कथंचित् एक चरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है, तथा १३. कथंचित् अनेक चरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है, किन्तु वह १४. न तो अनेक चरम रूप और न अनेक अवक्तव्य रूप है, १५. न एक अचरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है, १६. न एक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है, १७. न अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है १८. न अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है. १९. तथा न एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य रूप है, २०. न एक चरम, एक अचरम और अवक्तव्य रूप है, २१. न एक चरम अनेक अचरम रूप और एक अवक्तव्य रूप है २२. न एक चरम, अनेक अचरम रूप और अनेक अवक्तव्य रूप है, किन्तु २३. कथंचित् अनेक चरम रूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २४. कथंचित् अनेक चरम रूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्य रूप है, तथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004094
Book TitlePragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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