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आठवाँ संज्ञा पद - नैरयिकों में संज्ञाओं का अल्पबहुत्व
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भय संज्ञा के चार कारण - १. शक्ति नहीं होने से २. भय मोहनीय कर्म के उदय से ३. भय की बात सुनने और भयानक वस्तु को देखने से और ४. भय के कारणों का चिन्तन करने से भय संज्ञा उत्पन्न होती है।
मैथुन संज्ञा के चार कारण - १. शरीर में रक्त मांस की वृद्धि होने से २. वेद मोहनीय कर्म के उदय से ३. काम कथा सुनने से और ४. मैथुन का चिन्तन करने से मैथुन संज्ञा उत्पन्न होती है।
परिग्रह संज्ञा के चार कारण - १. अति मूर्छा आसक्ति होने से २. लोभ मोहनीय कर्म के उदय से ३. परिग्रह की बात सुनने से और ४. परिग्रह का चिन्तन करने से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है।
नैरयिक से आये हुए जीव में भय संज्ञा अधिक होती है। तिर्यंच गति से आये हुए जीव में आहार संज्ञा अधिक होती है। मनुष्य गति से आये हुए जीव में मैथुन संज्ञा और देव गति से आये हुए जीव में परिग्रह संज्ञा अधिक होती है।
नैरयिक से आये हुए जीव में क्रोध अधिक होता है, तिर्यंच गति से आये हुए जीव में माया अधिक होती है, मनुष्य गति से आये हुए जीव में मान और देवगति से आये हुए जीव में लोभ अधिक होता है।
__नैरयिकों में संज्ञाओं का अल्पबहुत्व णेरइया णं भंते! किं आहारसण्णोवउत्ता, भयसण्णोवउत्ता, मेहुणसण्णोवउत्ता, परिग्गहसण्णोवउत्ता?
गोयमा! ओसण्णं कारणं पडुच्च भयसण्णोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च आहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि।
कठिन शब्दार्थ - ओसण्णं - उत्पन्न (प्रायः करके), संतइभावं - संततिभाव।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक जीव क्या आहार संज्ञोपयुक्त-आहार संज्ञा के उपयोग वाले हैं, भय संज्ञा के उपयोग वाले हैं, मैथुन संज्ञा के उपयोग वाले हैं या परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक बाह्य कारण की अपेक्षा बहुधा भय संज्ञा के उपयोग वाले और संतति भाव-आंतरिक अनुभव की अपेक्षा आहार संज्ञा के उपयोग वाले यावत् परिग्रह संज्ञा के उपयोग वाले हैं अर्थात् चारों संज्ञा वाले हैं।
एएसि णं भंते! णेरइयाणं आहार सण्णोवउत्ताणं भय सण्णोवउत्ताणं मेहुण सण्णोवउत्ताणं परिग्गह सण्णोवउत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
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